________________ [11] समाधिसाम्य-द्वात्रिंशिका -xसमाधि-साम्य द्वात्रिशिका ...' (उपेन्द्रवज्रा छन्द) समुद्धतं पारगतागमाब्धेः, समाधिपीयूषमिदं निशम्य / महाशयाः ! पीतमनादिकालात्कषाय-हालाहलमुद्वमन्तु // 1 // हे महाशय भविकों,! आगमरूपी समुद्र के मन्थन से निकाले गये इस 'समाधि-पीयूष' को सुनकर अनादिकाल से पान किये हुए कषायरूपी जहर का वमन कर दो॥१॥ (उपजाति छन्द) विना समाधि परिशीलितेन, क्रियाकलापेन न कर्मभङ्गः। शक्ति विना किं समुपाश्रितेन, दुर्गेण राज्ञां द्विषतां जयः स्यात् // 2 // समाधि-शान्ति का परिशीलन किये बिना अन्य क्रिया-कलापों के द्वारा कर्मों का नाश नहीं हो सकता। क्योंकि शक्ति के बिना केवल किले का आश्रय पा लेने मात्र से राजा लोग अपने शत्रुओं को जीत सकते हैं क्या ? // 2 //