________________ 232 ] श्री विजयदेव गुरु के गुणसमूह से स्वच्छ गच्छ में श्रीजीतविजयजी महाराज परम प्रसिद्ध प्रतिष्ठा को प्राप्त हुए हैं उन्हीं के सहपाठी पू. नयविजयजी महाराज के शिष्य "यशोविजय" ने इस तत्त्व का कथन किया है // 1 // यः श्रीमद्गुरुभिनयादिविजयरान्वीक्षिकी ग्राहितः, प्रेम्णां यस्य च सन पद्मविजयो जातः सुधीः सोदरः। यस्य न्यायविशारदत्वविरुदं काश्यां प्रदत्तं बुधैस्तस्यैषा कृतिरातनोतु कृतिनामानन्दमग्नं मनः // 110 // जिस (यशोविजय उपाध्याय) को पूज्य श्रीनयविजयजी महाराज ने न्याय-विद्या का अध्ययन कराया, जिसके प्रेम के धामरूप श्रीपद्मविजय जी नामक विद्वान् गुरुभाई थे और जिसको काशी में बहाँ के विद्वानों ने 'न्याय विशारद' ऐसी पदवी प्रदान की, उसकी यह 'वीरस्तव' नामक कृति विद्वज्जनों के मन को आनन्द-मग्न बनाये // 110 //