________________ [ 217 की उपेक्षा करके कोई भी मनुष्य दुष्कर्मों का विनाश करने में कदापि समर्थ नहीं होता, और तप निकाचित-अन्य समस्त साधनों से क्षय किये जाने योग्य कर्म को भी नष्ट कर देता है, अतः मोक्ष के सम्पूर्ण साधनों में तप ही अभ्यर्हित है / / 87 // सम्यक क्रिया व्यभिचरेन्न फलं विशेषो, हेत्वागतो न परतोऽविनिगम्य भावात् / न द्रव्यभावविधया वहिरन्तरङ्ग भावाच्च कोऽपि भजनामनुपोहय भेदः / / 88 // फलप्राप्ति का कारण सामान्य क्रिया नहीं है किन्तु सम्यक्रिया है क्योंकि सम्यक्रिया होने पर फलप्राप्ति अवश्य होती है, उसमें फलप्राप्ति का व्यभिचार नहीं होता। सीपी में चाँदी के ज्ञान से होनेवाली चाँदी प्राप्त करने की क्रिया सम्यक्रिया नहीं है। इस पर यदि यह कहा जाय कि क्रिया में सम्यक्त्वरूप विशेष तो क्रिया के हेतुभूतज्ञान से ही आता है, अतः सम्यक्रिया की अपेक्षा उसे उत्पन्न करनेवाले ज्ञान को ही श्रेष्ठ मानना चाहिये तो यह ठीक नहीं है, क्योंकि क्रिया में सम्यक्त्व की सिद्धि ज्ञान से ही होती है, इस बात में कोई विनिगमकप्रमाण नहीं है। क्योंकि ज्ञान से यदि सम्यक्रिया का उदय होता तो असम्यक्ज्ञान से भी होता, पर असम्यक्रिया का उदय नहीं होता। इस पर यदि यह शङ्का की जाय कि सम्यग्ज्ञान भी तो ज्ञान ही है, अतः उसे सम्यक्रिया का कारण मानने पर भी क्रिया की अपेक्षा ज्ञान की श्रेष्ठता अपरिहार्य है, तो यह भी ठीक नहीं है, क्योंकि यह बात तब ठीक होती जब ज्ञान का सम्यक्त्व क्रिया के बिना ही सम्पन्न होता, पर यह बात है नहीं, क्योंकि सम्यक् प्रकार से अवलोकन आदि क्रिया से ही वस्तु के सम्यग् ज्ञान का उदय होता है। अतः ज्ञान के सम्यक्त्व के मूल में भी क्रिया की ही अपेक्षा होने से क्रिया की ही