________________ [ 161 है / द्रव्य शब्द की बात उससे भिन्न है क्योंकि वह उत्पत्ति, विनाश और ध्रौव्य के विभिन्न तीन प्राश्रयों का बोधक न होकर उन तीनों के एक आश्रय का बोधक होता है और एक आश्रय में उस प्रकार का बहुत्व, जिसका प्रतिपादन करना बहुवचन के प्रयोग के लिए आवश्यक है, सम्भव नहीं है,॥ 65 // एकत्व-संवलित-विध्यनुवादभावात्, बौद्धं बहुत्वमपि नो वचनात्ययाय / प्रत्येकमन्वयितयापि न तत्प्रसङ्ग स्तात्पर्यसङ्घटित-सन्निहिताश्रयत्वात् // 66 // उत्पत्ति, विनाश और ध्रौव्य इन तीन धर्मों को द्रव्य पद का प्रवृत्तिनिमित्त मानने पर द्रव्य पद के नित्य बहुवचनान्त होने की शङ्का इस प्रकार पूनः उठती है कि उक्त तीन अर्थों के प्राश्रयभूत एक व्यक्ति में यद्यपि संख्यारूप बहुत्व तो नहीं रह सकता पर ‘एक व्यक्ति उत्पत्ति, विनाश और ध्रौव्य इन तीन धर्मों का आश्रय होता है' इस प्रकार की बुद्धि न होने में कोई बाधा न होने से बौद्ध बहुत्व तो रह ही सकता है, फिर इस बौद्ध बहुत्व की दृष्टि से एक व्यक्ति में भी बहुवचनान्त द्रव्य पद का प्रयोग होने में जब कोई बाधा नहीं है तब द्रव्य पद नियमेन बहुवचनान्त क्यों नहीं होता? इस शङ्का का समाधान उक्त पद्य के पूर्वार्ध से इस प्रकार किया है___ एक व्यक्ति में बौद्ध बहुत्व का बोध सम्पादित करने के दो प्रकार हैं—एक तो यह कि उसे उद्देश्यभूत किसी एक व्यक्ति में विधेय बना दिया जाए, जैसे 'एक घट उत्पत्ति, विनाश और ध्रौव्य के भेद से बहुरूप है' दूसरा यह कि उसे एकत्व के अनुवाद्य-उद्देश्य कोटि में डाल दिया जाय, जैसे 'उत्पत्ति, विनाश और ध्रौव्य इन तीनों का आश्रय एक है' / बौद्ध बहुत्व के ये दोनों प्रकार बोध नियमेन एकत्व की अपेक्षा