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________________ 160 ] प्रकार का व्याकरण का कोई विशेष अनुशासन नहीं है। अतः उसके कारण द्रव्य शब्द को नियमेन बहुवचनान्तता नहीं प्राप्त हो सकती। दूसरे कारण से भी द्रव्य शब्द नियमेन बहुवचनान्त नहीं हो सकता क्योंकि उस स्थिति में द्रव्य शब्द के साथ प्रयुक्त होनेवाले बहुवचन को द्रव्य शब्दार्थ में बहुत्व संख्या का बोध कराना अनिवार्य होगा और उस का परिणाम यह होगा कि एक द्रव्य शब्द का प्रयोग असम्भव हो जाएगा क्योंकि एक द्रव्य में प्रतिपादनीय बहुत्व बाधित है। पुष्पवन्त शब्द का दृष्टान्त द्रव्य शब्द के लिए उपयुक्त नहीं है / क्योंकि पुष्पवन्त शब्द के साथ नियमेन द्विवचन के प्रयोग का समर्थक व्याकरण का कोई विशेष अनुशासन न होने पर भी दूसरे कारण से पुष्पवन्त शब्द के द्विवचन होने में कोई बाधा नहीं है / तात्पर्य यह है कि पुष्पवन्त शब्द यह एक ही शब्द चन्द्र और सूर्य इन दो विभिन्न अर्थों में है और वह शब्द इन अर्थों में किसी एक भी अर्थ को बताने के लिये कभी नहीं प्रयुक्त होता किन्तु चन्द्र और सूर्य इन दो अर्थों का प्रतिपादन करने के लिये ही प्रयुक्त होता है / अतः उसके साथ प्रयुक्त होनेवाले द्विवचन को पुष्पवन्त शब्दार्थ के विवक्षित द्वित्व को बताने में कोई बाधा नहीं है। यह शङ्का कि चन्द्र और सूर्यगत द्वित्व पुष्पवन्त पद के प्रवृत्तिनिमित्त चन्द्रत्व और सूर्यत्व का व्याप्य न होने से पुष्पवन्त शब्द के साथ प्रयुक्त होने वाले द्विवचन से प्रतिपादित नहीं हो सकता, ठीक नहीं है क्योंकि चन्द्रत्व और सूर्यत्व अलग-अलग यद्यपि उक्त द्वित्व के व्यापक नहीं हैं तथापि पुष्पवन्त शब्द के प्रवृत्तिनिमित्तत्व रूप से व्यापक तो हैं ही, क्योंकि उक्त द्वित्व के चन्द्रसूर्यरूप दोनों ही आश्रयों में पुष्पवन्त शब्द का कोई न कोई प्रवृत्तिनिमित्त विद्यमान है और जब चन्द्रत्व और सूर्यत्व उक्त रूप से चन्द्रसूर्यगत द्वित्व के व्यापक हैं तो उक्त द्वित्व भी उक्त प्रकार के चन्द्रत्व और सूर्यत्व का व्याप्य हो ही सकता
SR No.004396
Book TitleStotravali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharati Jain Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, P000, & P055
File Size20 MB
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