SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 282
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ 186 अर्थों में वह शब्द एकार्थक माना जाता है, जैसे पृष्पवन्त शब्द से सूर्य और चन्द्र का बोध क्रम से न होकर एक साथ ही होता है। अतः चन्द्रसूर्य दोनों में पुष्पवन्त शब्द की एक ही शक्ति मानी जाती है और वह शब्द उन अर्थों में एकार्थक माना जाता है / ठीक उसी प्रकार द्रव्य शब्द से उत्पत्ति, विनाश और ध्रौव्य का बोध क्रम से न होकर नियमेन एक साथ ही होता है। अतः उन तीनों अर्थों में द्रव्य शब्द की भिन्न-भिन्न शक्ति न होकर एक ही शक्ति होगी और द्रव्य उन अर्थों में नानार्थक न होकर एकार्थक ही होगा। प्रश्न का दूसरा- अंश यह है कि पुष्पवन्त शब्द एक शक्ति से दो अर्थों का बोधक होने से जैसे नियमेन द्विवचनान्त ही होता है वैसे ही एक शक्ति से उत्पत्ति अादि तीन अर्थों का बोधक होने से द्रव्य शब्द नियमेन बहुवचनान्त ही क्यों नहीं होता ? इसका उत्तर इस प्रकार - शब्दों के साथ वचन-प्रयोग के दो कारण होते हैं- व्याकरण का कोई विशेष अनुशासन अथवा शब्दार्थ की संख्या बताने का उद्देश्य / व्याकरण के विशेष अनुशासन से जो वचन प्रयुक्त होते हैं उन पर शब्दार्थ की संख्या बताने का कोई भार नहीं होता। इसीलिये एक जल के लिये भी बहुवचनान्त अप् शब्द का तथा एक स्त्री के लिये भी बहुवचनान्त दार शब्द का प्रयोग प्रामाणिक माना जाता है। किन्तु जो वचन दूसरे कारण से प्रयुक्त होते हैं उन पर शब्दार्थ की विवक्षित संख्या का नियन्त्रण होता है और उन्हें शब्दार्थ की उस संख्या को बताना अनिवार्य है जो शब्द की प्रवृत्ति के निमित्तभूत धर्म से व्याप्य होती है। जैसे घट शब्द के साथ प्रयुक्त बहुवचन से घट शब्द की प्रवृत्ति के निमित्तभूत घटत्व से व्याप्य घटशब्दार्थ के ही बहुत्व का बोध होता है न कि घट, पट और मठ इन विभिन्न शब्दार्थों के बहुत्व का। द्रव्य शब्द के साथ बहुवचन विभक्ति का ही प्रयोग हो, इस
SR No.004396
Book TitleStotravali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharati Jain Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, P000, & P055
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy