________________ [ 183 होगा ? उत्तर यह है कि संसार के प्रत्येक पदार्थ में दो अंश होते हैं एक स्थायी और एक क्षणिक, स्थायी अंश का नाम है समवाय अथवा द्रव्य और क्षणिक अंश का नाम है विशेष अथवा पर्याय, ये दोनों अंश परस्पर न तो एकान्ततः भिन्न होते हैं और न एकान्ततः अभिन्न / अतः पर्याय नामक अंश के क्षणिक होते हुए भी द्रव्यात्मना स्थायी और द्रव्यनामक अंश के नित्य होते हुए भी पर्यायात्मना क्षणिक होता है। इस प्रकार संसार का प्रत्येक पदार्थ अपने द्रव्यात्मक रूप में स्थायी और अपने पर्यायात्मक रूप में क्षणिक होता है। जैनदर्शन में माना गया यह द्रव्यांश बौद्ध दर्शन में माने गये सन्तान के समान है। अन्तर केवल इतना ही है कि बौद्ध दर्शन का सन्तान-सन्तानी क्षणों से पृथक् अपना कोई अस्तित्व नहीं रखता, परन्तु जैनदर्शन का द्रव्य पर्यायों से पृथक् अपना स्वतन्त्र अस्तित्व भी रखता है। यही कारण है कि जैनदर्शन का तद्रव्यत्व किसी भी उभय अथवा उभयाधिक पदार्थ में आश्रित नहीं होता, पर बौद्ध दर्शन का तत्सन्तानत्व उस सन्तान के घटक दो या दो से अधिक क्षणों में आश्रित होता है / / 62 // न द्रव्यमेव तदसौ समवायि-भावात, पर्यायतापि किमु नात्मनि कार्यभावात् / उत्पत्ति-नाश-नियत-स्थिरतानुत्ति, द्रव्यं वदन्ति भवदुक्तिविदो न जात्या // 63 / / जिस न्याय से प्रात्मा एकान्ततः नित्य नहीं है उसी न्याय से वह एकान्ततः द्रव्य भी नहीं है, किन्तु स्वगतगुणों का समवायिकारण होने से यदि वह द्रव्य है तो जन्म, जरा आदि अनन्त कार्यों का प्रास्पद होने से वह पर्याय भी है और यही कारण है जिससे वह मोक्षसाधनों * के अनुष्ठान द्वारा संसारी रूप से निवृत्त होकर सिद्ध-मुक्त रूप से