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________________ 180 ] सापेक्ष, निरपेक्ष, व्यापक अथवा अव्यापक इन्हीं रूपों में से किसी रूप में मानना होगा, पर इनमें किसी भी रूप में उसे नहीं माना जा सकता। जैसे वस्तु को स्थूल रूप में स्वीकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि यदि उसे स्थूलरूप में ही स्वीकार किया जाएगा तो अणु वस्तु के न होने से वस्तुओं की स्थूलता में न्यूनाधिक्य नहीं होगा, यह इस लिये कि वस्तुओं की स्थूलता का न्यूनाधिक्य उन्हें निष्पन्न करनेवाले अणुओं की संख्या के न्यूनाधिक्य पर ही निर्भर होता है। वस्तु को अणुरूप में भी नहीं स्वीकार किया जा सकता क्योंकि वस्तु यदि अणुरूप होगी तो उसका प्रत्यक्ष न हो सकने के कारण लोक-व्यवहार का उच्छेद हो जाएगा। वस्तु को भिन्नरूप में भी स्वीकृत नहीं किया जा सकता, क्योंकि वस्तु यदि भिन्न होगी तो अपने आप से भी भिन्न होगी और अपने आप से भिन्न होने का अर्थ होगा अपनेपन का परित्याग अर्थात् शून्यता। वस्तु को अभिन्नरूप में भी स्वीकृत नहीं किया जा सकता, क्योंकि यदि वस्तु का स्वभाव अभिन्न होगा तो कोई वस्तु किसी से भिन्न न होगी, फलतः घोड़े, बैल आदि की परस्पर भिन्नता का लोप हो जाने से एक के स्थान में दूसरे के समान विनियोग की आपत्ति होगी। वस्तु को सापेक्ष रूप में भी नहीं माना जा सकता, क्योंकि इस पक्ष में प्रत्येक वस्तु के सापेक्ष होने से अपेक्षात्मक वस्तु को भी सापेक्ष कहना होगा, जिसका फल यह होगा कि अपेक्षा को कल्पना के अनवस्थाग्रस्त होने से वस्तु की सिद्धि असम्भव हो जाएगी। निरपेक्षरूप में भी वस्तु की सत्ता नहीं मानी जा सकती, क्योंकि वस्तु को निरपेक्ष मानने पर पूर्व और उत्तर अवधि की भी अपेक्षा समान हो जाने से प्रत्येक वस्तु को अनादि और अनन्त मानना पड़ जाएगा और उसके फलस्वरूप वस्तु के असंख्य पदार्थों की लोकसिद्ध सादिता और सान्तता का लोप हो जाएगा। वस्तु को व्यापकरूप में भी नहीं
SR No.004396
Book TitleStotravali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharati Jain Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, P000, & P055
File Size20 MB
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