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________________ [ 177 उन धर्मों में एक धर्म के आश्रय में दूसरे धर्म के आश्रय का सर्वथा भेद ही नहीं होता किन्तु किसी एक दृष्टि से भेद तथा दूसरी दृष्टि से अभेद भी होता है, फलतः संसार के समस्त पदार्थों में विरोध तथा अविरोध एवं भेद तथा अभेद की शबलता अर्थात् मिश्रित स्थिति का नियम निष्पन्न होता है। इस बात को सत्ता तथा पानकरस के उदाहरण से समझा जा सकता है जैसे सत्ता द्रव्यत्व से विशिष्ट होकर द्रव्य में ही तथा गुणत्व से विशिष्ट होकर गुण में ही रहती है, इसलिये विशिष्ट स्वरूप की दृष्टि से द्रव्यत्व-विशिष्ट सत्ता तथा गुणत्व-विशिष्ट सत्ता में परस्पर विरोध और उनके आश्रय द्रव्य तथा गुण में परस्पर भेद होता है / परन्तु द्रव्यत्व तथा गुणत्व विशेषरणों से मुक्त विशुद्धसत्ता की दृष्टि से न तो उसमें विरोध ही होता है और न उसके आश्रय में ही भेद होता है; अर्थात् दृष्टिभेद से सत्ता में सत्ता का विरोध भी होता है और अविरोध भी एवं उसके आश्रयों में भी दृष्टिभेद से भेद भी होता है और अभेद भी। __ पानक रस की बात यह है कि सोंठ, मिरच, इलायची, किसमिस, पिश्ता और चीनी आदि द्रव्यों को दूध में पकाकर एक पेय तैयार किया जाता हैं, उस पेय का रस एक मात्र तीता, कडा , कसैला या मीठा ही नहीं होता, किन्तु उसमें डाले हुए द्रव्यों के विभिन्न रसों की समस्त विशेषताएँ विद्यमान रहती हैं, वह रस उन द्रव्यों के अपने निजी रसों से विलक्षण होता है। तात्पर्य यह है कि पानस रस के निष्पादक द्रव्यों की अपेक्षा कटुता, मधुरता आदि रसजातियों में परस्पर विरोध तथा उन जातियों के आश्रयभूत रसों में परस्पर भेद होता है, किन्तु तत्तत् द्रव्यों के मिश्रण से तैयार किये गये पेय द्रव्य की अपेक्षा उन जातियों में अविरोध तथा उनके आश्रयभूत पेय रस में अभेद होता है, ठीक यही बात जगत् के सब पदार्थों के सम्बन्ध में है / अतः जगत् का प्रत्येक
SR No.004396
Book TitleStotravali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharati Jain Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, P000, & P055
File Size20 MB
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