________________ 18 ] दृष्टि से उन्हें दो-चार नहीं, अपितु अनेक विषयों के पी-एच.० डी० कहें तो भी अनुचित न होगा। ___ भाषा की दृष्टि से देखें तो उपाध्याय जी ने अल्पज्ञ अथवा विशेषज्ञ, बालक अथवा पण्डित, साक्षर अथवा निरक्षर, साधु अथवा संसारी सभी व्यक्तियों के ज्ञानार्जन की सुलभता के लिए जैनधर्म की मूलभूत प्राकृतभाषा में, उस समय की राष्ट्रीय जैसी मानी जानेवाली संस्कृत भाषा में तथा हिन्दी और गुजराती भाषा में विपुल साहित्य का सर्जन किया है / उपाध्यायजी की वाणी सर्व नयसम्मत मानी जाती है अर्थात् वह सभी नयों की अपेक्षा गर्भित है। विषय की दृष्टि से देखें तो आपने अागम, तर्क, न्याय, अनेकान्तवाद, तत्त्वज्ञान, साहित्य, अलंकार, छन्द, योग, अध्यात्म, प्राचार, चारित्र, उपदेश आदि अनेक विषयों पर मार्मिक तथा महत्त्वपूर्ण पद्धति से लिखा है। संख्या की दृष्टि से देखा जाए तो उपाध्याय जी की कृतियों की संख्या 'अनेक' शब्दों से नहीं अपि तु सैंकड़ों' शब्दों से बताई जा सके इतनी है / ये कृतियाँ बहुधा आगमिक और तार्किक दोनों प्रकार की हैं / इनमें कुछ पूर्ण तथा कुछ अपूर्ण दोनों प्रकार की हैं तथा कितनी ही कृतियाँ अनुपलब्ध हैं। स्वयं श्वेताम्बर परम्परा के होते हुए भी दिगम्बराचार्यकृत ग्रन्थ पर टीका लिखी है / जैन मुनिराज होने पर भी अजैन ग्रन्थों पर टीकाएँ लिख सके हैं। यह आपके सर्वग्राही पाण्डित्य का प्रखर प्रमाण है / शैली की दृष्टि से देखते हैं तो आपकी कृतियाँ खण्डनात्मक, प्रतिपादनात्मक और समन्वयात्मक हैं / उपाध्यायजी की कृतियों का पूर्ण योग्यतापूर्वक पूरे परिश्रम के साथ अध्य१. उपाध्याय जी महाराज द्वारा रचित कृतियों की सूची के लिए देखिए परिशिष्ट पहला।