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________________ [ 16 यन किया जाए, तो जैन आगम अथवा जैन तर्क का सम्पूर्ण ज्ञाता बना जा सकता है / अनेकविध विषयों पर मूल्यवान् अति महत्त्वपूर्ण सैंकड़ों कृतियों के सर्जक इस देश में बहुत कम हुए हैं उनमें उपाध्यायजी का निःशङ्क समावेश होता है। ऐसी विरल शक्ति और पुण्यशीलता किसी-किसी के ही भाग्य में लिखी होती है / यह शक्ति वस्तुतः सद्गुरुकृपा, सरस्वती का वरदान तथा अनवरत स्वाध्याय इस त्रिवेणी सङ्गम की आभारी है। __ उपाध्याय जी 'अवधानकार' अर्थात् बुद्धि की धारणा शक्ति के चमत्कारी भी थे। अहमदाबाद के श्रीसंघ के समक्ष और दूसरी बार अहमदाबाद के मुसलमान सूबे की राज्यसभा में आपने अवधान के प्रयोग करके दिखलाए थे। उन्हें देखकर सभी आश्चर्यमुग्ध बन गए थे। मानव की बुद्धि-शक्ति का अद्भुतं परिचय देकर जैन-धर्म और जैन साधु का असाधारण गौरव बढाया था। उनकी शिष्य-सम्पत्ति अल्प ही थी। अनेक विषयों के तलस्पर्शी विद्वान् होते हुए भी 'नव्यन्याय' को ऐसा आत्मसात् किया था कि वे 'नव्यन्याय' के अवतार माने जाते थे। इसी कारण वे 'ताकिक-शिरोमणि' के रूप में विख्यात हो गए थे / जनसंघ में नव्यन्याय के आप अनन्य विद्वान् थे। जैन सिद्धान्त और उनके त्याग-वैराग्य-प्रधान आचारों को नव्यन्याय के माध्यम से तर्कबद्ध करनेवाले एकमात्र अद्वितीय उपाध्याय जी ही थे। उनका अवसान गजरात के बड़ौदा शहर से 16 मील दूर स्थित प्राचीन दर्भावती, वर्तमान डभोई शहर में वि० सं० 1743 में हुआ था। भाज उनके देहान्त की भूमि पर एक भव्य स्मारक बनाया गया है जहां उनके वि० सं० 1945 में प्रतिष्ठा की हुई पादुकाएँ पधराई गई हैं / डभोई इस दृष्टि से सौभाग्यशाली है। उपाध्याय जी के जीवन की तथा उनको छूनेवाली घटनाओं की यहाँ संक्षेप में सच्ची झांकी कराई गई है।
SR No.004396
Book TitleStotravali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharati Jain Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, P000, & P055
File Size20 MB
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