________________ [ 175 परमाणु में, और उस दशा में कम्प का प्रत्यक्ष असम्भव हो जाएगा। इस दोष से इस बात को छोड़कर यदि यह कहा जाय कि अवयवी में कम्प होने के लिये उसके समस्त अवयवों में कम्प पैदा करनेवाले कारणों का सन्निधान अपेक्षित होता है, अतः जब किसी एक ही अवयव में कम्प के कारण का सन्निधान होता है उस समय अवयवी में कम्प की उत्पत्ति नहीं हो सकती. तो यह ठीक नहीं है, क्योंकि ऐसा मानने पर कोई मनुष्य कभी भी अवयवी को कम्पित करने का साहस ही न कर सकेगा, तथा अवयवी को कम्पित करने के लिये समस्त अवयवों को कम्पित करने वाले कारणों को एकत्र करना होगा और उन सब कारणों का ज्ञान दुष्कर होने के नाते उस कार्य में मनुष्य की प्रवृत्ति न हो सकेगी। ___ छठी बात जिसकी चर्चा पद्य के उत्तरार्ध में स्पष्टरूप से की गई है, यह है कि अवयव के कम्प के समय यदि अवयवी को कम्पहीन माना जाएगा तो कम्पयुक्त अवयव से जितने भी द्रव्यसंयुक्त और . विभक्त होंगे उन सभी के साथ अवयवी के बहुत से संयोगज-संयोग तथा विभागज-विभाग मानने होंगे और उन संयोगों तथा विभागों के पुनर्जन्म को रोकने के लिये उन संयोगों और विभागों को उन्हीं के प्रति अलग-अलग प्रतिबन्धक मानना होगा, और यह कल्पना अत्यन्त गौरव-ग्रस्त होगी। अभिप्राय यह है कि अवयव के कम्प के समय यदि अवयवी में भी कम्प होगा तो जिन-जिन स्थानों से अवयव के संयोग और विभाग होते हैं उन-उन स्थलों से अवयवी के भी संयोग और विभाग अवयवी के कम्प से ही उत्पन्न हो जाएंगे और अवयवी के कम्प की निवृत्ति हो जाने के कारण उन संयोगों और विभागों का पुनर्जन्म नहीं होगा, परन्तु अवयव के कम्प के समय यदि अवयवी कम्पहीन रहेगा तो अवयव के संयोगी और वियोगी स्थानों से अवयवी के जो संयोग और विभाग होंगे उनके प्रति अवयव के संयोग और