________________ 174 ] उचित नहीं है क्योंकि वृक्ष और शाखा दोनों में समवाय-सम्बन्ध से कम्प का भान मानने पर प्रतीति का यह प्राकार नहीं होगा कि 'वृक्ष अपने शाखाभाग में कम्पित हो रहा है' किन्तु उसका आकार होगा 'वृक्ष और शाखा दोनों कम्पित हो रहे हैं।' अतः ‘बृक्ष अपने शाखाभाग में कम्पित हो रहा है' इस लोकसिद्ध प्रतीति के अनुरोध से वृक्ष को समवाय सम्बन्ध से तथा शाखा को अवच्छेदकता-सम्बन्ध से कम्पयुक्त मानना अनिवार्य है। . ___ चौथी बात जलयुक्त स्थिर और अस्थिर दो पात्रों में तद्वत् ही चन्द्र के दिखाई देने की है और उससे यह प्रश्न उठता है कि जैसे स्थिर जल में स्थिर चन्द्र और अस्थिर जल में अस्थिर चन्द्र दो प्रकार के दिखाई देते हैं वैसे ही वृक्ष दो क्यों नहीं दिखाई देते ? इस प्रश्न का उत्तर है पृथक्-पृथक् अाधारों का होना; किन्तु वृक्ष के अवयव एक दूसरे से पृथक् नहीं है, उनके बीच व्यवधान, करनेवाली उनसे पृथक् कोई वस्तु भी नहीं है अतः उनमें एक वृक्ष का दा दिखाई देना कथमपि सम्भव नहीं है। इस पर यदि यह कहा जाय कि- यह उत्तर तो वृक्ष को निष्कम्प मानने पर भी दिया जा सकता है, तो ठीक नहीं हैं क्योंकि उक्त उत्तर से वृक्ष की अनेकान्तरूपता का निराकरण नहीं हो सकता। क्योंकि उक्त उत्तर में ही यह बात आजाती है कि वक्ष अपने अवयवों से अभिन्न भी है और भिन्न भी है, अभिन्नता अपृथगभूतता-रूप है और भिन्नता अन्यत्व अथवा वैधर्मरूप है। पाँचवीं बात यह है कि जब किसी अवयवी द्रव्य के किसी अवयव में कम्प होगा तब उस अवयवी में भी कम्प का होना अनिवार्य है, क्योंकि अवयवी की स्थिति अवयव से पृथक् न होने के कारण जिसके सम्पर्क से अवयव में कम्प होता है उसका सम्पर्क अवयवी में रोका नहीं जा सकता। यदि किसी एकमात्र अवयव के कम्प की उत्पत्ति को रोकने के लिये अवयवी को ही कम्प का विरोधी मान लिया जाएगा तो किसी भी अवयवी में कदापि कम्प नहीं हो सकेगा, होगा केवल