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________________ [ 151 (2) ज्ञान और ज्ञेय में एकजातीयता है-ज्ञेय ज्ञान से विजातीय नहीं है। ___(3) ज्ञान सत्य है किन्तु ज्ञेय-उसका प्रकाश्य विषय असत्य है / और उक्त तीनों पक्ष दोषग्रस्त होने से समर्थन कोप्राप्त नहीं हो सकते। इस प्रकार विचार करने पर ज्ञेय की ज्ञानरूपता, ज्ञान-सजातीयता तथा असत्यता युक्तिसङ्गत न होने से आपकी उक्ति से बाह्य विचार करनेवाला हेतु बल का आश्रय लेने में भी असमर्थ है // 36 // प्राद्ये ह्यसिद्धिसहितौ व्यभिचारबाधौ, स्यादप्रयोजकतया च हतिद्वितीये / शून्यत्वपर्यवसितिश्च भवेत्तृतीये, स्याद्वादमाश्रयति चेत् विजयेत वादी // 37 // बौद्ध प्रतिपादित प्रथम पक्ष-'ज्ञय की ज्ञानरूपता' के साधन में असिद्धि, व्यभिचार और बाध दोष आते हैं। दूसरे पक्ष 'ज्ञेय और ज्ञान में अभिन्न सजातीयता' के साधनार्थ हेतुओं का प्रयोग करने पर उनमें 'अप्रयोजकत्व दोष' आता है। तथा 'ज्ञान सत्य है पर उसका विषयज्ञेय असत्य है' इस तीसरे पक्ष का साधन करने पर माध्यमिक के शून्यवाद की आपत्ति खड़ी होती है। इस प्रकार उक्त तोनों पक्षों के दोषंग्रस्त होने से एक ही उपाय समझ में आता है कि 'यदि वह स्याद्वाद का आलम्बन ले, तो वाद में विजयी हो सकता है' // 37 // धीग्राह्ययोर्नहि भिदास्ति सहोपलम्भात्, प्रातिस्विकेन परिणामगुणेन भेदः / इत्थं तथागतमतेऽपि हि सप्तभङ्गी, ...सङ्गीयते. यदि तदा न भवद्विरोधः // 38 // जैनमत में सहोपलम्भ-विषयत्व ज्ञान और ज्ञेय का साधारण धर्म
SR No.004396
Book TitleStotravali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharati Jain Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, P000, & P055
File Size20 MB
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