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________________ [ 141 पर्यायों की विभिन्नता से भिन्न क्यों न होगी? क्या वह वस्तु में भेद और अभेद दोनों को प्रश्रय देकर आपके इस स्याद्वाद के आश्रय में नहीं आ जाता जिसे लौकिक और शास्त्रीय युक्तियाँ सुप्रतिष्ठित करती हैं ? अर्थात् उसी का भिन्नकालिक पर्यायों के द्वारा अथवा विभिन्न कालों के द्वारा भेद स्वीकार करने के लिये भेदाभेद की एकनिष्ठता स्वीकृत हो जाने से स्याद्वादसिद्धान्त का अंगीकरण फलित हो जाता है जिस के परिणाम स्वरूप प्रत्यभिज्ञा-रूप ज्ञान का सप्तभङ्गी द्वारा समर्पित होनेवाले वस्तु स्वरूप की प्रकाशता प्राप्त हो जाती है / / 27 // / तद्धेमकुण्डलतया विगतं यदुच्चै- . रुत्पन्नमदतया चलितं स्वभावात। लोका अपीदमनुभूतिपदं स्पृशन्तो, न त्वां श्रयन्ति यदि यत्तदभाग्यमुग्रम् // 28 // ___जो सुवर्ण पहले कुण्डल के आकार में रहता है और बाद में जब अंगद के प्रकट आकार में उत्पन्न होता है तब अपने पूर्वाकार का त्याग कर देता है किन्तु अपनी नैसर्गिक 'सुवर्ण-द्रव्यात्मकता' का त्याग नहीं करता। ऐसी स्थिति में इस एकान्त सत्य का अनुभव करते रहने पर भी हे भगवन् ! जो लोग आपका आश्रय स्वीकार नहीं करते उनका यह उत्कट दुर्भाग्य है / / 28 / / स्वद्रव्यतां यदधिकृत्य तदात्मभावं, गच्छत्यदः कथमहो परजात्यभिन्नम् / तात्पर्य भेदभजना भवदागमार्थः, स्याद्वादमुद्रितनिधिः सुलभो न चान्यः // 26 // जो पदार्थ स्वद्रव्यता के द्वारा तादात्म्य को प्राप्त करता है वह
SR No.004396
Book TitleStotravali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharati Jain Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, P000, & P055
File Size20 MB
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