SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 232
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ 136 विशेषणों के आश्रयों में भी भेद का स्फुरण होता है तथापि निमित्तभेद से अर्थात् द्रव्यार्थिक दृष्टिकोण से उन विशेषणों के आश्रयभूत विशुद्ध द्रव्यांश के अभेद का भी उसी ज्ञान में स्फूरण होता है। अतः यह स्पष्ट है कि प्रत्यभिज्ञा नामक ज्ञान विशेषणों की दृष्टि से भेद का और विशुद्ध विशेष्यों की दृष्टि से अभेद का प्रकाशन करता है // 24 // दृष्टा सुधीभिरत एव घटेऽपि रक्ते, श्यामाभिदाश्रयधियो भजना प्रमात्वे / . सा निनिमित्तकतयाध्यवसाय एव, न स्यात् तदाश्रयरगतस्तु तथा यथार्था // 25 // 'प्रत्यभिज्ञा में निमित्तभेद से भिन्न वस्तुओं के अभेद का भान होता है इसीलिये रक्त घट में श्याम घट की अभिन्नता को अवभासित करनेवाली प्रत्यभिज्ञा में विद्वज्जनों ने अनियत-प्रमाणता स्वीकृत की है, क्योंकि निमित्तभेद का आधार छोड़ देने पर "यह घट रक्त श्याम है" इस प्रकार की उक्त प्रत्यभिज्ञा को निश्चयरूपता से वञ्चित होना पड़ेगा और उस स्थिति में उसकी प्रमाण-कक्षा में गणना असम्भव हो जाएगी, क्योंकि अपने स्वरूप और विषय को अवभासित करनेवाले संशय, विपरीत निश्चय और अनिश्चय से भिन्न ज्ञान को ही आकर ग्रन्थों में प्रमाण श्रेणी में गिना गया है / और यदि निमित्तभेद का सहारा लेकर उक्त प्रत्यभिज्ञा उद्भूत होगी तो उसे निमित्तभेद के अनुसार ही प्रमाणरूपता भी अवश्य ही प्राप्त होगी, अर्थात् उक्त प्रत्यभिज्ञा यदि एक घट में काल भेद से रक्तता और श्यामता विषयक हो तो यह प्रमाण रूप से समाप्त होगी और यदि एक ही काल में उपर्युक्त दोनों धर्मों का एक घर में ग्रहण करने का साहस करेगी तो अप्रमाण की पंक्ति में बिठा दी जाएगी। उक्त प्रत्यभिज्ञा की प्रमाणता की अनित्यता का यही रहस्य है // 25 //
SR No.004396
Book TitleStotravali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharati Jain Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, P000, & P055
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy