________________ [ 137 नाशोऽत्र हेतुरहितो ध्रुवभावितायास्तेनागतं स्वरसतः क्षरिणकत्वमर्थे / इत्येतदप्यलमनल्पविकल्पजाल रुच्छिद्यते तव नयप्रतिबन्दितश्च // 21 // 'उत्पन्न होनेवाले भाव पदार्थ का नाश कारणनिरपेक्ष है, क्योंकि वह अवश्यम्भावी होता है उसके होने में विलम्ब नहीं होता', यह एक निश्चित नियम है, इसलिये बिना किसी प्रमाणान्तर की अपेक्षा किये ही पदार्थ को क्षणिकता सिद्ध हो जाती है। हे भगवन् ! बौद्ध का यह कथन भी उचित नहीं है क्योंकि आपके नय की प्रतिबन्दी से तथा ध्रुवभाविता-अवश्यम्भावितारूप हेतु के स्वरूप के बारे में उठनेवाले सभी विकल्पों के दोषग्रस्त होने से उक्त कथन का सर्वथा निरास हो जाता है // 21 // द्रव्यार्थतो घटपटादिषु सर्वसिद्धमध्यक्षमेव हि तव स्थिरसिद्धिमूलम् / तच्च प्रमाणविधया तदिदन्त्वभेदा भेदावगाहि नयतस्तदभेदशालि // 22 // -- हे भगवन् ! आपके मत में 'सोऽयम्'- वह यह है, अर्थात् उस स्थान और उस समय की वस्तु तथा इस स्थान और इस समय की वस्तु अभिन्न है--एक है, यह सार्वजनीन प्रत्यक्ष ही घट, पट आदि पदार्थों के द्रव्यांश की स्थिरता के साधन का मूल है। वह प्रत्यक्ष प्रमाणरूप से १-तत्ता-तद्देश एवं तत्काल के साथ सम्बन्ध तथा २-इदन्ता, एतद्देश. एवं एतत्काल के साथ सम्बन्ध-इन दो रूपों से भेद और उन विभिन्न देश-कालों में सूत्र के समान अनुस्यूत द्रव्य के रूप से अभेद का प्रकाशन करता है और वही प्रत्यक्ष नय-रूप से अभेद-मात्र का