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________________ 136 ] * अन्वय-व्याप्ति के समर्थन की जो यह असमर्थता है, वह व्यतिरेकसिद्धि-जो क्रमकारी तथा अक्रमकारी नहीं होता वह असत् होता है - इस अभावाश्रयी नियम की सिद्धि में भी बाधक है / इसके अतिरिक्त / ज्वर में श्वास-वृद्धि, मूर्छा तथा प्रलाप आदि के समान उक्त व्यतिरेक नियम की सिद्धि में पक्ष, हेतु और दृष्टान्त की प्रसिद्धि आदि अन्य दोष भी हैं // 16 // प्रादाय सत्त्वमपि न * क्रमयोगपद्ये, नित्यान्निवृत्त्य बिभृतः क्षणिके प्रतिष्ठाम् / यन्न त्वदीयनयवाङ्नगरी गरीय श्चित्रस्वभावसरणौ भयतो निवृत्तिः // 20 // ...क्रम क्रमकारित्व अर्थात्-एक कार्य करने के बाद दूसरा कार्य करना तथा यौगपद्य युगपत्कारित्व अर्थात्-अपने सभी कार्यों को एक ही साथ करना-इनमें से कोई भी प्रकार स्थायी पदार्थ में सम्भव नहीं है, अतः उसमें सत्ता नहीं मानी जा सकती। 'क्षणिकपदार्थ में योगपद्य सम्भव है, अतः उसी में सत्ता की स्वीकृति उचित है यह बौद्ध-कथन संगत नहीं है, क्योंकि स्थायी पदार्थ में क्रमकारिता मानने में कोई भी दोष नहीं है अतः क्रमयोगपद्यभाव से उसमें सत्ता का अभाव सिद्ध नहीं हो सकता। हे भगवन् ! वस्तुतः सत्ता न सर्वथा स्थायी पदार्थ में सुरक्षित हो सकती है और न सर्वथा क्षणिक पदार्थ में; किन्तु आपकी नय-नगरी के श्रेष्ठ चित्रस्वभाव-रूपी राजमार्ग पर स्याद्वाद के महारथ में अर्थात् कथञ्चित् स्थायी और कथञ्चित् रूप से स्वीकृत अनेकान्तात्मक पदार्थ में हो मानने पर भय से निवृत्ति हो सकती है। अतः वस्तु को न एकान्त स्थिर ही मानना चाहिये और न एकान्त वणिक ही, अपितु उभयात्मक मानना चाहिये / / 20 //
SR No.004396
Book TitleStotravali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharati Jain Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, P000, & P055
File Size20 MB
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