________________ [ 127 सम्बन्ध से पहले क्षण में रहनेवाले घट आदि पदार्थों में द्वितीय क्षण में रहनेवाले घट आदि पदार्थों का भेद सिद्ध होता है, किन्तु यह भेद पहले क्षण में विद्यमान वस्तु का दूसरे क्षण में विनाश माने बिना सम्भव नहीं है। इस प्रकार घट आदि पदार्थों में सत्ता और क्षणिकता के सहचार का दर्शन होने से 'जो सत् है वह क्षणिक है' इस व्याप्ति का निश्चय निर्बाधरूप से हो सकता है। किन्तु हे भगवन् ! आपकी आज्ञा के बहिर्वर्ती बौद्ध का यह कथन ठीक नहीं; क्योंकि क्षणिकता का मूलभूत भेद जिन विरुद्ध धर्मों के सम्बन्ध से सिद्ध किया जाता है, वे साधक प्रसङ्ग-तर्क और व्यत्यास-विपरीतानुमान के अनेक विकल्पों से व्याहत होने के कारण सिद्ध ही नहीं होते / / 5 / / सामर्थ्यमत्र यदि नाम फलोपधानमापाद्य साध्यविभिदाविरहस्तदानीम् / इष्ट-प्रसिद्धयनुभवोपगम-स्वभाव व्याघात इच्छति परो यदि योग्यतां च / / 6 // [प्रस्तुत तर्क तथा विपरीतानुमान में बौद्ध] यदि सामर्थ्य शब्द से फलोपधायकता को लेना चाहता है, तो आपाद्य और पापादक तथा साध्य और साधन के परस्पर भेद का लोप एवं यदि स्वरूपयोग्यता को ग्रहण करना चाहता है, तो इष्ट-प्रसिद्धि-सिद्धसाधन-अनुभवोपगम साध्यबाधक निश्चय, तथा स्वभाव (अर्थात् स्वरूप के द्वारा उक्त तर्क एवं विपरीतानुमान) का व्याघात प्राप्त होता है // 6 // न त्वद्रुहो भवति चेप्सितसाध्यसिद्धिमुख्यात् समर्थविषय-व्यवहारतोऽपि / भूम्ना स जन्म विषयोऽपि हि योग्यतोत्थो, व्याप्तिस्तु हेतुसहकारि विशेषलभ्या // 7 //