________________ 126 ] भिन्न; जन्म, जरा आदि विकारों से रहित, ज्ञान से भिन्न और ज्ञान आदि गुणों का आधार" द्रव्य है, इस निश्चय को मोक्ष का उपाय कहा है।* किन्तु आपकी वाणी पर्यायाथिक और द्रव्याथिक ऐसे भिन्नभिन्न नयों के अनुसार दोनों पक्षों के अनुकूल है, तथापि विशदव्यवहार-मोक्ष की ओर ले जानेवाले व्यावहारिक पक्ष की-दृष्टि से प्राद्य-पक्ष-बौद्धों के अनात्मवाद को अप्रामाणिक बताकर उसका खण्डन करती है / / 3 // . प्रात्मा न सिध्यति यदि क्षणभङ्गबाधा, नैरात्म्यमाश्रयतु तद्भवदुक्तिबाह्यः / व्याप्त्यग्रहात् प्रथमतः क्षरणभङ्गभङ्गे, शोकं स भूमि-पतितोभयपाणिरेतु // 4 // क्षणभङ्ग अर्थात् 'प्रत्येक भावात्मक वस्तु अपने जन्म के ठीक बादवाले क्षण में ही नष्ट होती है', इस सिद्धान्त को सिद्ध करनेवाले प्रमाण के विरोध से यदि ज्ञानाश्रय आत्मा की सिद्धि न हो, तो बौद्ध का आपके उपदेश की अवहेलना कर अनात्मवाद का आश्रय लेना उचित होगा, किन्तु यदि सत्त्व में क्षणिकत्व की व्याप्ति का ज्ञान न हो सकने के कारण प्रारम्भ में क्षणभङ्ग की ही सिद्धि न हो, तो पृथ्वी पर अपने दोनों हाथ पटक कर उसे शोकमग्न होना ही पड़ेगा // 4 // सामर्थ्यतविरहरूप-विरुद्धधर्मसंसर्गतो न च घटादिषु भेदसिद्धः। व्याप्तिग्रहस्तव परस्य यतः प्रसङ्ग व्यत्यासयोर्बहुविकल्पहतेरसिद्धिः // 5 // . 'सामर्थ्य' और 'तद्विरह रूप-असामर्थ्य' इन दो विरुद्ध धर्मों के * द्रष्टव्य—'न्यायसिद्धान्तमञ्जरी' अवतरणिका /