________________ [ 123 तपगणमुनिरुद्यत्कीति-तेजोभृतां श्री"नयविजय"गुरूणां पादपद्मोपजीवी। स्तवनमिदमकार्षाद्वीतरागैकभक्तिः, प्रथितशुचि"यशः" श्रीरुल्लसद्भक्तियुक्तिः // 11 // तपागच्छ के मुनियों में उदीयमान कीर्ति के तेज को धारण करनेंवाले 'श्रीनयविजय' नामक गरु के चरण कमलों के सेवक, वीतराग के चरणों में एकान्त भक्तिवाले तथा प्रख्यात एवं पवित्र यशःश्री से उल्लसित 'श्री यशोविजय उपाध्याय' ने भक्ति की युक्तियों से पूर्ण यह महावीर स्वामी का स्तवन निर्मित किया // 11 // * इस पद्य में ‘मालिनी-छन्द' का प्रयोग हुआ है / साथ ही द्वितीय पद्य में 'अष्टमङ्गल' का निर्देश तथा क्रमशः 2, 3, 4 और ५वें पद्य में १-साल• म्बन-योग, २-निरालम्बन-योग, ३-चरमावञ्चक-योग और ४-इच्छा योग का सूचन भी महत्त्वपूर्ण है। इन योगों का विशिष्ट विवेचन भूमिका में देखें। -~-सम्पादक