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________________ [ 8 ] . वीरस्तवः न्यायखण्डनखाद्यटीकासंवलितः] 'न्याय खण्डनखण्ड खाद्य' टीका से युक्त -वीरस्तव- . . ऐङ्कारजापवरमाप्य कवित्व-वित्त्ववाञ्छासुरद्रुमुपगङ्गमभङ्गरङ्गम्। ' सूक्तैविकासि-कुसमस्तव वीर शम्भोरम्भोजयोश्चरणयोवितनोमि पूजाम् // 1 // ... गङ्गा के निकट ‘ऐ" इस बीजमन्त्र के जप के वरदानरूप में, जिस सामर्थ्य का कभी ह्रास नहीं होता, ऐसे कवित्व और विद्वत्ता की कामना को पूर्ण करनेवाले कल्पवृक्ष को प्राप्त कर उसी के सूक्तरूपी खिले हुए पुष्पों के द्वारा हे कल्याण के उद्भावक, हे महावीर ! मैं (यशोविजय) आपके चरणकमलों की पूजा करता हूँ // 1 // ' यह सुप्रसिद्ध है कि--पूज्य उपाध्याय श्रीयशोविजयजी महाराज ने गङ्गा के किनारे वाराणसी में प्रवचन की अधिष्ठायिका श्रुतदेवी, वाग्देवी, भारतीदेवी आदि नामों से विख्यात भगवती सरस्वती देवी के बीजमन्त्र 'ऐ' का जप करके वरदान प्राप्त किया था। इस बात का उल्लेख स्वयं स्तुतिकार ने
SR No.004396
Book TitleStotravali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharati Jain Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, P000, & P055
File Size20 MB
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