________________ [8] . श्रीमहावीरप्रमुस्तोत्रम् श्री महावीर प्रभु स्तोत्र (मन्दाक्रान्ता छन्द) ऐन्द्र ज्योतिः किमपि कुनय-ध्वान्त-विध्वंससज्जं, सद्योऽविद्योज्झितमनुभवे. यत्समापत्तिपात्रम् / तं 'श्रीवीरं" भुवन-भुवनाभोगसौभाग्यशालिज्ञानादर्श परमकरुणा-कोमलं स्तोतुमीहे // 1 // जो कुनयरूपी अज्ञानान्धकार का विनाश करने में तत्पर किसी अनिर्वचनीय इन्द्रसम्बन्धी ज्योति है, जो अविद्या से रहित है, जो अनुभव में समापत्ति-सम्यग् ज्ञानरूप है, जो समस्त भुवनों के विस्तार का कल्याण करनेवाला है, जो ज्ञान का आदर्श है तथा जो परम करुणा से द्रवित है, ऐसे श्री वीर प्रभु की मैं स्तुति करना चाहता हूँ // 1 // दिव्य-श्रव्य'ध्वनिमभिनवच्छत्र सच्चामरौघं, हृद्यातोद्य प्रवर-कुसुमा शोकशोभं सभायाम् // स्वामिन् सिंहासन मधिगतं भव्यभामण्डलं त्वां। ध्यात्वा भूयः कलयति कृती को न सालम्बयोगम् // 2 //