________________ 12 ] समान रहकर घर को प्रकाशित करेगा किन्तु यदि त्यागी होकर ज्ञानी बन गया तो सूर्य के समान हजारों घरों को प्रकाशित करेगा, हजारों आत्माओं को आत्मकल्याण का मार्ग बताएगा। अतः यदि एक घर की अपेक्षा अनेक घरों को मेरा पुत्र प्रकाशित करे, तो इससे बढ़कर मुझे और क्या प्रिय हो सकता है ? मैं कैसी बड़भागी होऊँगी ? मेरी कुक्षि रत्नकुक्षी हो जाएगी।' ऐसे विचारों से माता के हृदय में हर्ष और आनन्द का ज्वार उठा, जैनशासन को अपनाई हुई माता ने उत्साहपूर्वक गुरु और संघ की आज्ञा को शिरोधार्य किया। अपने अतिप्रिय कुमार को एक शुभ चौघड़िये में गुरु श्रीनयविजयजी को समर्पित कर दिया। यह भी एक धन्य क्षण था। इस प्रकार जैनशासन के भावी में होनेवाले जयजयकार का बीजारोपण हुग्रा। धर्मात्मा सोभागदे ने वैरागी और धर्मसंस्कारी जसवंत को शासन के चरणों में अर्पित कर दिया.। छोटे से कनोई ग्राम में ऐसे उत्तम बालक को दीक्षा देने का कोई महत्त्व नहीं था, अतः श्रीसंघ ने अनुकूल साधन-सामग्री वाले निकटस्थ पाटण नगर में ही दीक्षा देने का निर्णय लिया। पिता नारायणजी का पाटण शहर के साथ उत्तम सम्बन्ध था। इसलिये हमारे चरित्रनायक पुण्यशाली जसवंत कुमार की भागवती दीक्षा शुभ मुहूर्त में 'अरणहिलपुर' के नाम से प्रसिद्ध पाटण शहर में बड़ी धूमधाम से सम्पन्न हुई। ___ अपने भाई को संयम के पन्थ पर जाते हुए देखकर जसवन्त के भाई 'पद्मसिंह' का मन भी वैराग्य के रंग में रंग गया था, धर्मात्मा माता-पिता उसमें सहायक थे और पद्मसिंह द्वारा दीक्षा लेने की उत्कट भावना व्यक्त करने पर उसे भी उसी समय दीक्षा दी गई। जैनश्रमण परम्परा के नियमानुसार गृहस्थाश्रम का नाम बदलकर जसवन्त का नाम –'यशोविजय' 'जसविजय' और पद्मसिंह का नाम