________________ [ 13 'पद्मविजय' रखा गया। इन नामों का समस्त जनता ने जयनादों की प्रचण्ड घोषणां के साथ अभिनन्दन किया। जनता का आनन्द अपार था। चतुर्विध श्रीसंघ ने सुगन्धित अक्षतों द्वारा आशीर्वाद दिये। दोनों पुत्रों के माता-पिता ने भी अपने दोनों पुत्रों को आशीर्वाद देकर उनको बधाई दी। अपनी कोख को प्रकाशित करनेवाले दोनों बालकों को चारित्र के वेश में देखकर उनकी आँखें अश्रु से भीग गईं। घर में उत्पन्न प्रकाश प्राज से अब जगत् तो प्रकाशित करनेवाले पथ पर प्रस्थान करेगा, इस विचार से दोनों के हृदय आनन्दविभोर हो गये। पहले छोटी दीक्षा दी जाती है, बाद में बड़ी / अतः इस दीक्षा के पश्चात् बड़ी दीक्षा के योग्य तप किया। पूरी योग्यता प्राप्त होने पर उन्हें बड़ी दीक्षा दी गई। तदनन्तर गुरु नयविजयजी विहार करके अहमदाबाद पधारे। वहाँ विविध प्रकार का धार्मिक शिक्षण प्रारम्भ किया। तीव्र बुद्धिमत्ता के कारण वे तेजी से पढ़ने लगे। पढ़ने में एकाग्रता और उत्तम व्यवहार को देखकर श्रीसंघ के प्रमुख व्यक्तियों ने बालमुनि जसविजय में भविष्य के महान् साधु की अभिव्यक्ति पाई। बुद्धि की कुशलता, उत्तर देने की विलक्षणता आदि देखकर उनके प्रति बहुमान उत्पन्न हुआ, धारणा शक्ति का अनूठा परिचय मिला। वहां के भक्तजनों में 'धनजी सुरा' नामक एक सेठ थे। उन्होंने जसविजयजी से प्रभावित होकर गुरुदेव से प्रार्थना की कि 'यहाँ उत्तम पण्डित नहीं हैं अतः विद्याधाम काशी में यदि इन्हें पढ़ने के लिये ले जाएँ तो ये द्वितीय हेमचन्द्राचार्य जैसे महान् और धुरन्धर विद्वान् बनेंगे और इसके लिये होनेवाले समस्त व्यय का भार उठाने तथा पण्डितों का उचित सत्कार करने का वचन भी दिया। ___ गुरुदेव यशोविजय के साथ उत्तम दिन विहार करके वे परिश्रम- . पूर्वक गुजरात से निकलकर दूर सरस्वतीधाम काशी में पहुंचे। वहाँ