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________________ 10 ] कुमारपाल पूज्य श्री हेमचन्द्राचार्यजी के ही शिष्यं थे। यही कारण है कि हेमचन्द्राचार्यजी एवं कुमारपाल की जोड़ी द्वारा लोकहृदय में बहाई गई अहिंसा, दया, करुणा, प्रेम, कोमलता, सहिष्णुता, समभाव, शान्तिप्रियता, धार्मिक भाव, सन्तप्रेम, उदारता आदि गुणों की धारा इस देश में प्रमुख स्थान रखती है। वस्तुतः अपने गुरुदेव के आदेश से कुमारपाल द्वारा योग्यता और सत्ता के सहारे गुजरात की धरती . के प्रत्येक घर से लेकर कण-कण तक फैलाई गई अहिंसा भारत के इतिहास में बेजोड़ है, अद्भुत है और अमर है। ऐसी गुजरात की पुण्य भूमि पर उत्तर गुजरात में एक समय गुजरात की राजधानी के रूप में प्रसिद्धि प्राप्त 'पाटण' शहर है / जो कि मन्दिर, सन्त, महात्मा, धर्मात्मा तथा श्रीमन्तों से सुशोभित है। उस पाटण नगर के निकट ही 'धीरपोज' गाँव है / इस धीणोज से कुछ दूरी पर 'कनोडु' नामक गाँव है / आज वह गांव सामान्य गाँव जैसा है, आज वहाँ सम्भवतः जैनों के एक-दो घर होंगे किन्तु सत्रहवीं शती में वहां जैनों की बस्ती अधिक रही होगी। इसी 'कनोडु, गाँव में 'नारायण' नामक एक जैन व्यापारी रहते थे, जो धर्मिष्ठ थे। उनकी पत्नी का नाम 'सोभागदे' (सौभाग्यदेवी। था। इस पत्नी ने किसी सुयोग्य समय में एक महान् तेजस्वी पुत्ररत्न को जन्म दिया। माता-पिता ने उसका नाम 'जसवंत कुमार' रखा। ये जसवंत ही थे हमारे भावी 'यशोविजय जी।' ___ अत्यन्त खेद की बात है कि वे किस वर्ष के किस मास में किस दिन उत्पन्न हुए थे' इसका कहीं कोई उल्लेख हमें प्राप्त नहीं होता है। उनके जीवन को व्यक्त करने वाली- 'सुजसबेली, ऐतिहासिक वस्त्रपट, हैमधातुपाठ की लिखित पोथी, ऊना के स्तवन का लिखित पत्र तथा उनके द्वारा रचित ग्रंथों की प्रशस्तियाँ'- इन सब सामग्रियों
SR No.004396
Book TitleStotravali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharati Jain Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, P000, & P055
File Size20 MB
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