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________________ महोपाध्याय, न्यायविशारद, न्यायाचार्य, षड्दर्शनवेत्ता, पूज्य श्रीमद् यशोविजयजी महाराज __ का संक्षिप्त जीवन-चरित्र -ले० मुनि श्रीयशोविजयजी . हमारे भारतवर्ष के पश्चिम भाग में गुजरात प्रदेश है। इस भूमि पर ही शत्रुजय, गिरनार, पावागढ़ जैसे अनेक पर्वतीय पवित्रधाम हैं, जो दूर-दूर से लोगों के मन को आकर्षित करते हैं / धार्मिक क्षेत्र में दिग्गजस्वरूप समर्थ विद्वान्, महान् प्राचार्य और श्रेष्ठ सन्त, तपस्विनी साध्वियाँ तथा राष्ट्रीय ग्रंथवा सामाजिक क्षेत्र में सर्वोच्च कोटि के नेता, कार्यकर्ता, साहित्यक्षेत्र में विविध भाषा के विख्यात लेखक, कवि और सर्जक भी गुजरात की भूमि ने उत्पन्न किये हैं / महान् वैयाकरण पाणिनि के संस्कृत-व्याकरण से निर्विवादरूप में अति उच्चकोटि का माने जानेवाले 'सिद्धहेमशब्दानुशासन' नामक व्याकरण की अनमोल भेट केवल गुजरात को ही नहीं अपितु समस्त विश्व को जो प्राप्त हुई है, उसके रचयिता गुजरात की सन्तप्रसू भूमि पर उत्पन्न जैनमुनि कलिकालसर्वज्ञ हेमचन्द्राचार्य जी ही थे। भारत के अठारह प्रदेशों में अहिंसा-धर्म का व्यापक प्रचार करनेवाले गुर्जरेश्वर परमार्हत महाराजा कुमारपाल भी गुजरात की धरती पर उत्पन्न होनेवाले नररत्न थे। जिनके आदेश से सेना के लाखों की संख्या में नियुक्त व्यक्ति, हाथी एवं घोड़े भी जहाँ वस्त्र से छना हुआ पानी पीते थे। सिर में पड़ी हुई जूं तक को जिसके राज्य में मारा नहीं जा सकता था, जिसने धरती से हिंसा-राक्षसी को सर्वथा देशनिकाला दे दिया था, वे महाराजा
SR No.004396
Book TitleStotravali
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYashovijay
PublisherYashobharati Jain Prakashan Samiti
Publication Year1975
Total Pages384
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, P000, & P055
File Size20 MB
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