________________ [ 83 लिये आज कल्पवृक्ष फलित हो गया है, पापों का समूह नष्ट हो गया है और रत-लेप को दूर करनेवाली देवमणि मेरे हाथ आ गई है अथवा रति के गर्व को हटानेवाली उत्तम रमणी मुझे प्राप्त हो गई है // 100 // दिशति कार्मणमोश ! शिवश्रियः, प्रियसमागमहेतुरनुत्तरः / विजयते विहितोत्कट-सङ्कटव्युपरमा परमा तव संस्तुतिः // 101 // हे जिनेश्वर ! आपकी स्तुति मोक्षलक्ष्मी को वश में करने के लिये जादू का काम करती है और जिससे बढ़कर कोई नहीं है ऐसे प्रिय के समागम का कारण है। ऐसी भयङ्कर सङ्कट को शान्त करनेवाली तथा उत्कृष्ट लक्ष्मी को देने वाली प्रापकी स्तुति विजय को प्राप्त हो रही है / / 101 // तव मतं यदि लब्धमिदं मया, किमपर भगवन्नवशिष्यते ? / सुरमणौ करशालिनि कि धनं, स्थितमुदीतमुदीश ! पराङ्मुखम् / / 102 // हे उदीतमुदीश ! (उद्+ईत-मुद्+ईश !) हर्ष प्राप्त करनेवाले स्वामी ! भगवान् जिनेश्वर ! यदि मैंने आपके इस मत को प्राप्त कर लिया तो दूसरा क्या बाकी रह जाता है ? (अर्थात् सब कुछ पा लिया) जब चिन्तामणि हाथ में आ जाती है तो अन्य धन नहीं भी मिले तो क्या ? // 102 / / सर्प कन्दर्पसर्पस्मयमथनमहामन्त्रकल्पेऽवकल्पे, प्रत्यक्षे कल्पवृक्षे परमशुभनिधौ सत्तमोहे तमोहे / निर्वाणानन्दकन्दे त्वयि भुवनरवो पावना भावना भाध्वस्तध्वान्ते समग्रा भवतु भवतुदे सङ्गा मे गतामे / / 103 //