________________ [ 71 विलासो नारीणामिह खलु पराभूतिरुदिता, प्रसिद्धा चान्येषां तव च परमोहव्यवसितिः। इदं सर्व साम्यं तदपि तव तैनँद तुलनां, सहर्ष भाषन्ते परमकवयः कौतुकमदः // 42 // हे जिनेश्वर ! इस जगत में नारीणां-स्त्रियों का विलास पराभव करनेवाला. कहा गया है, और न+अरीणां-शत्रुओं के (काम-क्रोध आदि शत्रुओं के) विलास का प्रभाव परा भूतिः उत्कृष्ट ऐश्वर्य कहा गया है। इसी प्रकार अन्य देवों का पर-मोह (अन्य स्त्री-धनादि का मोह। रूप व्यवसाय प्रसिद्ध है और आपका परम+ऊह (उत्कृष्ट परमात्म सम्बन्धी ज्ञान) रूप व्यवसाय भी प्रसिद्ध है, यह सब सामान्य है। तथापि महान् कवि जन उन देवों के साथ आपकी सहर्ष तुलना नहीं करते हैं यह उचित ही है तथा जो तुलना करते हैं वे (परम् + अकवय) पूर्ण रूप से अकवि ही हैं / / 42 / / - (प्रस्तुत पद्य में 'नारीणां, पराभूतिः, परमोह और परमकवयः' आदि पदों में श्लेष अलङ्कार का चमत्कार है / ) अपारव्यापारव्यसनरसनिर्माणविलयस्थितिक्रीडावीडा न खलु तव विश्वे विलसति / न कोपं नारोपं न मदिरोन्मादमनिशं, न मोहं न द्रोहं कलयसि निषेव्योऽसि जगतः // 43 // हे जिनेश्वर ! आपकी इस विश्व में अपार व्यापाररूप व्यसन से युक्त निर्माण, नाश और पालन सम्बन्धी विलास की लज्जा कहीं दिखाई नहीं देती है। तथा आप न क्रोध को, न आरोप को, न मदरूपी मदिरा के उन्माद को, न मोह को और न द्रोह को धारण . करते हैं, अतः आप संसार के सर्वथा सेवनीय हैं // 43 //