________________ [ 55 नई पत्रवल्ली .की रचना से सुशोभित क्षमाशील शरीरवाले तथा अपने चरण कमलों पर फैलते हुए कुकुम युक्त जल के बहाने से उन्नत कुछ लालवर्ण वाले नखों की कान्ति से दसों दिशावधुओं के शरीर को सुशोभित करते हुए श्रीशङ्खश्वर पार्श्वनाथ जिनेश्वर जय को प्राप्त करें // 67 / / जीयाः पीयूषवीची-निचयपरिचिति प्राप्य माधुर्यधुर्या, वाचं वाचंयमेभ्यो ननु जननजरात्रासदक्षां ददानः / चेतस्युत्पन्नमात्रां निजपदकमलं भेजुषां याचकानां, याच्यां सम्पूर्य कल्पद्रुमकुसुमसिताप्नुवन द्यां यशोभिः // 8 // ___ अमृत के तरंग-समूह-समुद्र के समान अत्यन्त मधुर, जन्म और जरा को भयभीत करने में प्रवीण ऐसी वाणी से मुनिजनों को उपदेश देते हुए तथा अपने चरण कमलों के सेवक याचकों के चित्त में उत्पन्न इच्छा को पूर्ण करके कल्पवृक्ष के पुष्पों के समान उज्ज्वल यश द्वारा आकाश को व्याप्त करते हुए श्रीशङ्खश्वर पार्श्वनाथ जय को . प्राप्त करें // 68 // (इस पद्य में 'यशोभिः' पद से स्तोत्रकर्ता कवि 'श्री यशोविजयजी उपाध्याय' के नाम का भी सङ्कत किया गया है।) -: 0 :