________________ 54 ] श्रीमद्धर्मोपदेशे श्वसितपरिमलोद्गारसारेण दाढचं, सौरभ्यं पारिजातव्रततिततिगतामुष्णतां दातुमुत्कः // 5 // जिनके धर्मोपदेश में चमकीली दन्तज्योति की पंक्तियों में शोभित जानुपर्यन्त पुष्पों में मँडराती हुई भ्रमरियों को बार-बार फूल का तादात्म्य बोध होने पर अर्थात् उज्ज्वल दाँतों की किरणें ही पूष्प के समान ज्ञात होने पर श्वास-सुगन्धि के श्रेष्ठ उद्गार से उत्कट सुगन्ध और कल्पलता की श्रेणी में स्थित 'उष्णता को देने में उत्सुक ऐसे श्री पार्श्वजिनेश्वर जय को प्राप्त करें // 65 // , जीयाः संसारधन्वाध्वनि जनिजनितानन्ततापासहानां, भव्यानां कल्पवल्लीपरिचित-सखितामादिशन् देशनां स्वाम् / मोक्षाध्वन्यस्य साधोर्गहनतमतमोध्वंस-निर्बन्धमाज, दत्त्वा सज्ज्ञानदीपं घनरुचिरुचिर क्लृप्तविश्वोपकारः॥ 96 // संसाररूपी मरुमार्ग में जन्मजनित तापों को सहन न कर सकनेवाले भव्य जीवों को कल्पलता के समान अपनी देशना देते हुए, मोक्ष के पथिक साधु के लिये गहन अन्धकार-नाशक, पर्याप्त ज्योति से युक्त सम्यग्ज्ञान रूपी दीपक को प्रदान कर विश्व का उपकार करनेवाले श्री शङ खेश्वर पार्श्वनाथ विजयी हों / 66 / / जीयाः पादावनम्र-त्रिदशपति-शिरोमौलिवडूर्य रोचिः, कस्तूरीपत्रवल्लीनवनव-रचनारोचितक्ष्माशरीरः / उत्सर्पविभः पदाब्जान्नखरुचि-पटलैः पाटलैः कुङकुमाम्भोदम्भोदग्रर्दशानामपि तनुमनिशं भूषयन् दिग्वधूनाम् // 7 // प्रणाम करने वाले इन्द्रादिक देवों के मुकुट में जटित वैडूर्यमणि की चमक जिनके चरणों में व्याप्त है ऐसे कस्तूरी से बनाई गई नई