________________ [6] श्रीपार्वजिनस्तोत्रम् श्रीपार्श्वजिन-स्तोत्र (शिखरिणी-छन्द) // 1 // // 2 // %3D %3D // 4 // // 5 // स्मरः स्मार स्मारं भवदवयुमुच्चर्भवरिपोः, पुरस्ते चेदास्ते तदपि लभते तो बत दशाम् / रिपुर्वा मित्रं वा द्वयमपि समं हन्त ! सुकृतोज्झितानां किं ब्रूमो जगति गतिरेषास्ति विदिता // 7 // इस स्तोत्र के प्रारम्भ में 1 से 6 तथा प्रागे 58 से 62 और 68 से 63 तक की संख्यावाले कुल 37 पद्य प्राप्त नहीं हुए हैं।