________________ 52 ] भर्ता संसारगर्तापतदखिलजनवारणदक्षस्त्रिलोक्या, भर्ता हर्ता जनानां दुरितसुविततेर्जन्मलक्षोजितायाः। भर्ता तर्ता भवाब्धेनिजसविधजुषां तारणेऽपि प्रभूष्णुभर्ता कर्ताऽस्तु शलेश्वरनगरमणिर्भावुकानां ममासौ // 1 // . संसाररूपी गड्ढे में गिरते हुए समस्त लोक की रक्षा करने में समर्थ और तीनों लोकों के स्वामी, प्राणियों के अनन्त जन्मों से उपाजित पाप-परम्परा का हरण करनेवाले, संसार-समुद्र के पारगामी, अपने निकटस्थ सेवकों को पार करने में समर्थ तथा भावूक भक्तों का पालन-पोषण करनेवाले वे शर्केश्वर नगर के रत्नरूप श्री शर्खेश्वर पार्श्वनाथ स्वामी मेरे रक्षक हों / / 61 // . जीयाः स्वर्णाद्रि-चूलाद्यतुलतरकचस्यूतजीमूतमालः, कालिन्दीमध्यवेल्लत्कुवलयवलयश्यामलच्छाय-कायः / कायोत्सर्गावलम्बे शठकमठहोन्मुक्तमेघोपलोद्यच्छत्रीभूताहिनाथस्फुटमणिकिरणश्रेरिणविद्योतिताशः // 12 // * सुमेरु-पर्वत के शिखरों पर पगणित केशों के समान जमी हुई मेघमाला के सदृश, यमुना नदी के बीच में हिलते हुए नील कमल के कङ्कण-समान श्यामल कान्तियुक्त शरीरवाले तथा कायोत्सर्ग के अवलम्बन में दुष्ट कमठ द्वारा बरसाये गये मेवोपल-प्रोलों के समय छत्र के समान बने हुए सर्पराज की फणामणियों की किरणों से दिशात्रों को प्रकाशित करनेवाले श्रीशङ्ख श्वर पार्वश्नाथ जय को प्राप्त करें-विजयी हों // 13 // जोयाश्चान्द्रीयरोचिनिचयसितयशःक्षीर-पाथोधिमज्जद्: ब्रह्माण्डोड्डीनबिन्दुभवदमरनदीनीपूतान्तरिक्षः /