________________ [5] शवेश्वरपार्श्वजिनस्तोत्रम् श्रीशंखेश्वर-पार्वजिनस्तोत्र (उपजाति छन्द) ऐंकाररूपस्मरणोपनीता, कृतार्थभावं धियमानयामि / समूलमुन्मूलयितुं रुजः स्वाः, संस्तूय शखेश्वरपार्श्वनाथम् // 1 // मैं अपने रोगों का समूल उन्मूलन करने के लिये श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ की स्तुति करके ऐ कार मन्त्र के जप से उपलब्ध बुद्धि को सफल बनाता है // 1 // भवद्गुणानां गणनां विधातुं, पुरन्दरोऽपि प्रभुरेव न स्यात् / तथापि निःशङ्कतया प्रवृत्तिर्यत्तत्र हेतुनिजकार्यलोभः / / 2 // हे देव ! यद्यपि आपके गुणों की गणना (स्तुति) करने में इन्द्र भी समर्थ नहीं हो सकता तथापि इस कार्य में मेरी जो निःशङ्क प्रवृत्ति हो रही है, उसमें अपने कार्य का लोभ ही कारण है // 2 // यः कार्यमासाद्य महान्तमीशं, न याचते नाम निजानुरूपम्। रत्नानि वर्षत्यपि वारिवाहे, स पारिणदाने कृपणत्वमेति // 3 //