________________ दशा श्रुतस्काधस्य विचाराः गच्छे पडिबद्धाण अहलंदीणं तु अह पुण विसेसो / उग्गही जो तेसिं तू सो आयरियाण आभवइ // 2559 // एगवसहीए पणगं छन्वीहीओ व गाम कुवंति / दिवसे दिवसे अण्ण अडंति वीहीय नियमेण // 2560 // परिहाविसुद्धीणं जहेच जिणकप्पियाण नवरतु / आयंबिल तु भत्त गेण्हंती वासकप्पं च // 2569 // चूणिर्यथा-परिहारियाण वि जहा जिणाणं नवरं आयंबिलेण मासी सो सच्चो वि होइ ति / जिणकप्पि-अहालंदी-परिहारविसुद्धियाण जिणकप्पो / थेराणं अजाण य बोधवो थेरकप्पो उ // 2564 // इति अहालंदगादिविचारः // इति पञ्चकल्पविचारा: समाप्ता : // दश श्रुतस्कन्धविचारा यथाअत्थेण वा विचित्तं सुयं, अहवो सप्तमयपरसमयेहि उस्सग्गाववाएहि पा, उक्तं च - 'चित्रं बह्वर्थयुक्तम्' इति स्तुतियुगलसूचा चतुर्थदशायाम् / 'पक्खियपोसहिएसु' इति / चूर्णिणयथा-पक्खियं पक्खियमेव, पक्खिए पोसहो पक्खियपोसहो चाउद्दसिअट्टमीसु य। इति पाक्षिकविचारः पञ्चमदशायाम् / उहिट्टा-अमावासा पञ्चमदशायाम् / तत्थ णं जे से पावाए मज्झिमाए हस्थिपालरण्णो रज्जुयसभाए मपच्छिमं अंतरावास वासावास उवागए, तस्स णं अंतरावासस्स ने से वासाणं चउत्थे मासे सत्तमे पक्खे कत्तियब हुले, तस्स णं कत्तियबहुलस्स पण्णरसी पक्खेण जा सा चरिमा रयणी, तं रयणिं