________________ निःशेषसिद्धान्तविचार-पर्याये उस्सगेण विहारो संथरमाणोण नव उ हेत्तेसु / तो सब्युग्घादुवही न विल्ले आव दगा / / .009 / तेषु एव उत्पादयेत् उपधिं न तु क्षेत्रे अष्टौ ऋतुबद्धाः वर्षाकालाश्चेत्यर्थ:। दुलभंमि वत्थपाए ऊणहिएसु वि नवसु गच्छेजा / . एमेव विहारो वि हु खेत्ताणऽसई मुणेयवो // 6011 // एगत्थ उ गामाइलु जहियं संथरंति तहि अच्छे / / सम्वेसिं तहिं उग्गहो साहारण होइ जह नगरे // 2457 // जइ पुण बहिया हाणी तहिं वढि गुणाण तत्थ अच्छति। के पुण गुणाइ भणिया भण्णइ नाणाइया हुंति // 2473 // कालाईए दोसा व्यक्खओ होइ अच्छमाणाण / तम्हा उ न ढेिजा रित्तं दुविहकालम्मि // * 474 / / मा होज चरणभेमो पुण्णाइयंमि संवसंताण / अइचिरसंवासेण सिणेहमाईहि / दोसेहिं // 2479 // ___ इति कालातिकमवसनविचारः // अइहिमदेले य तहा कारणियगयाण सिसिरकालम्मि / परिभुजंताण य का विवाद चरणे अणुवघाओ // 2499 // इति प्रावरणविचारः // संभुतणा विरु द्धा उवग्गहं कुणइ नाणचरणाण। संभुंजणा असुद्धा चरित्तभेयं वियाणाहि // 2.06 // इति संभोगविचारः // अहलंदियाण गच्छे अप्पडिबद्धाण जह जिणाणतु। नवरं कालविसेसो उडुवासे पणग चउमासी / / 2758 / / चूर्णिणस्तु-नवरि काले छन्भागे गामा कीरइ / एगेगे भागे पंच दिवस भिक्ख हिंडंति तत्थेव वसंति / वासासु एगत्थ चाउम्मासो इत्यर्थः /