________________ नि:शेषसिद्धान्तविचार-पर्याये ते भगवंतो रागदोसनिग्गहपरा मा य पडिमाए वा पाउयाण वा रागहोसा न भवति / इति प्रावरणविचारः // . .. रसपरिच्चागं न करेइ निच्चमेव विगइपडिबद्धो कायकिलेसन करेइ ठाणासणमोणाईणि पायच्छित्तं विसंभोगो वा / इति रसत्यागविचारः / / चोएइ चेइआणं खेत्तहिरण्णाइ गामगावाई। लग्गंतस्स व जइणो तिगरणसोही कहं नु भवे ? // 1569 // भण्णइ एत्थ विभासा जो एयाई सयं विमग्गेजा। न हु तस्स होइ सोही अह कोइ हरेज एयाई // 1570 / / तत्थ करित उवेहं जा सा भणिया तु तिगरणविसाही। सा य न होइ अभत्ती य तस्स तम्हा निवारेजा / / 1571 / / उपेक्षां कुर्वाणे त्रिकरणशुद्धिर्न भवति अभक्तिश्च कृता स्यात् तस्मानिवारयेदित्यर्थो ज्ञेयः। सम्वत्थामेण तहिं संघेणं होइ लग्गियव्वं तु / सचरित्तऽचरित्ताण उ सम्वेसिं एय कज तु॥१५७२ / / चूष्णिस्तु-रुप्पहिरण्ण उवण्णाइ साहुणा आयठिरण तवनियम जुत्तेण चेयनिमित्त रुपहिरण्णवणं अपुवं उप्पाएइ, तस्स माणदरिसणचरित्तमणोकरणाइया तिगरणसोही न भयह / जया पुण पुवपवत्ताणि खेत्तहिरण्ण-दुपयचउप्पयाई जइ भंड वा चेइआणं लिंगत्था वा चेइयदव्वं राउलबलेण खायंति, रायभडाइ वा अच्छिदेजा, तया तवनियमसंपउत्तो वि साहू जइ न मोएइ वावार वा न करेइ, तया तस्स नाणाइसुद्धी न भवइ, आसायणा य भवइ / एवं समुप्पन्ने कज्जे रायाईणं पुव्वं अणुसट्टी करेइ, धम्मो वा से कहिजइ, अणिच्छंतस्स अंतद्धाणेण वा अवहरति / इति देवद्रव्यविचारः पञ्चकल्पे //