________________ . व्यवहारस्य विचारा: 75 चूणिस्तु वत्तं नाम एकसिं तेण ववहरिय, अणुवत्तो दुण्णि वाराओ. तेण ववहारेण ववहरियं, पवत्तो त्ति तिणि वारा तेण ववहारेण ववहरिय। 'बहुसो बहुस्सुएहिं जो वत्तो न य निवारिओ होइ / वत्तणुवत्तपमाणं जीएण कय हवइ एयं॥ जं जीय सावज न तेण जीएण होइ ववहारो। जं जीयमसावज तेण उ जीएण ववहारो॥ 715 // जं जीयमसोहिकर' पासत्थपमत्तसंजयाईणं / जइ वि महाजणाइण्ण म तेण जीएण ववहारो // 720 // जं जीय सोहिकर संविग्गपरायणेण दंतेणं / एगेण वि आइण्णं तेण * उ जीपण ववहारो॥ 721 // // इति जीतविचारः॥ मणपरमोहिपुलाए 3 आहारग 4 खवग. 5 उवसमे 6 कप्पे 7 / संजमतिय 8 केवलि 9 सिझणा य 10 जंबुम्मि वुच्छिण्णा // 699 // 'खवग'त्ति / उवसामगसेढिदुगं, 'कम्पत्ति। जिणकप्पो, 'संजमतियं' ति / सुद्धपरिहारियसंजमो सुहुमसंपरायसंजमो अहक्खायसंजमो / संघयण संठाणं च पढमगच 2 जो य पुव्वउवओगी 3 / एए तिणि वि अत्था चउदसपुस्विम्मि वोच्छिण्णा // 700 / / संघयणसंठाणाणि पढमाणि पुव्वउवओगो। एए तिण्ण वि (अत्था) भहबाहुम्मि वोच्छिण्णा // //