________________ 74 नि:शेषसिद्धान्तविचार-पर्याये दस जा अणुसज्जति चउद्दसपुबिए पढमसंघयणं / तेण परेणऽट्टविहीं जा तित्थ ताव होहिती ( बोधव्वं ) // 353 // एगाहं नाम अभत्तट्ठो तम्मि सेविए पंचराइंदियाणि देज बहुतर' वा / पंचाई वा सेवित्ता एगाह देज आयंबिलं वा पुरिमइदं वा एगासणं वा निम्वियं वा पोरिसि वा नमोकार वा, सा पुण बुड्ढी वा हाणी वा रागदोसवेरगभावणाईहिं पुवभणिएहि भवति / // इति तपोविचारः // न विणा तित्थ नियंढेहिं नियंट्ठा व अतित्थया। छक्कायसंजमो जाव ताव अणुसजणा दोण्ह // 389 // तस्स य चरिमाहारो इट्ठो दायवो तण्हछेयट्ठा / सव्वस्स चरिमकाले अईव तण्हा समुप्पज्जे // 496 // सरीरमुज्झियं जेण को संगी तस्स भोयणे ? / समाहिसंधणाहे दिजए सो उ अंतए // 544 // कप्पस्सय निज्जुत्ति ववहारस्स य परमनिउणस्स / जो अत्थओ विजाणइ ववहारी सो अणुण्णाओ॥ 607 // कुलाइकजववहारे जोए ज भगवया भद्दबाहुणा सुत्तं निज्जूढं कप्पववहारा तं सुत्तं उच्चारित्ता तस्स अत्थ भाणिऊणं निहिसइ / वत्तणुवत्तपवत्तो बहुसो अणुवत्तिओ महाणेण / एसो उ जीयकप्पो पंचमओ होइ नायवो // 693 // वत्तो नाम एक्कसि अणुवत्तो जो पुणो बितियवार / तइयवार पवत्तो परिग्गहिओ महाणेणं // 694 / /