________________ व्यवहारस्य विचारा: 73 विनयश्चतुर्दा यथा मायारे 1 सुतविणए 2 विक्खेवण चेव होइ बोधव्वे 3 / दोसस्स य निग्घाए 4 विणए चउहेस पडिवत्ती॥३०३॥ आयारे विणओ खलु चउविहो होइ आणुपुब्बीए / संजमसामायारी 1 तवे य र गणविहरणा 3 चेव // 304 // सुत्त / अत्थ 2 च तहा हिय निस्सेस 4 तहा पवाएछ / एसो चउन्विहो खलु सुयविणओ होइ नायवो // 312 // विक्खेवणा-विणओ जहा अदिटुं दिटुं खलु 1 दिटुं साहम्मियत्तविणएण 2 / चुयधम्म धम्मे ठावे 3 तस्सेव हियट्टमभुट्टे 4 // 315 // दोषनिर्घातविनयो यथाकुद्धस्स कोहविणयण 1 दुट्ठस्स दोसविणयणं जं तु 2 / कंखिए कंखछेओ३ आयप्पणिहाण चउहेसो 4 // 323 // ____ इति अट्टविहा गणिसंपया // ___ इति व्याख्यात व्यवहारे दशमोद्देशके // (तपोविचारः) पक्खियपोसहिएसु कारेइ तवं सयं कारविय / भिक्खायरिए तहा नियुंजइ पर सयं वावि // 1 // अर्थस्तु पाक्षिक पाक्षिकमेव, पोसहिय तु पोसहदिणं अट्टमीचउहसीलक्खणं / इत्यक्षराणि पाक्षिकविषये। दशविध पायश्चित्तं यथा आलोयण 1 पडिकमणे 2 मीस.३ विवेगे 4 तहा विउस्सग्गे 5 / तव 6 छेय 7 मूल 8 अणवट्ठया य 9 पारंचिए 10 चेव // 352 //