________________ नि:शेषसिद्धान्तविचार-पर्याये व्यवहारसूत्रं (10) यथा नो कप्पइ निगंथाण वा निगंथीण वा ऊणट्टवासजाय खुडुय वा खुड्डियं वा उवट्ठावित्तए / भाष्यं तु ऊणट्टए चरित्तन चिट्टए चालणीए उदयव / बालस्स य जे दोसा भणिया आरोवणाए सा // 9 // // उद्देशके दशमे // // इति व्यवहारविचाराः समाप्ता: // पञ्चकल्पविचारा यथा-. भद्रबाहुना दशाकल्पव्यवहारनिशीथमहाकल्पसूत्राद्या: प्रवचनाभिहिता निर्जूढा: / जम्हा तेण भगवयो आयारपकप्पो दसाकप्पववहारा य नवमपुव्वनीसंदभूया निर्जूढाः / सामाइय छेओवट्ठावणं च परिहारसुद्धिय चेव / तत्तो य सहमरागं अहखायं चेव बोधव्वं // 79 // कस्सेय चारित्त नियंठ तह संजयाण ते कइहा ? / / पंच नियंठा पंचेव संजया हुँतिमे कमसो // 83 // पुलए बउस कुसीले होइ नियंठे तहा सिणाए य / एएसिं एकेको पंचविहो होइ बोधवो। // 84 // नोणपुलाए तह दसणे य चारित्तलिंग अहसुहुमे / / एसो पंचविहो खलु पुलगनियंठो मुणेयवा / / 85 / / आभोगमणाभोगे तह संवुडमसंयुडे अहासुहुमे / एसा पंचविहो ऊ बउसनियंठे। मुणेयव्वा // 86 // दुविहो होइ कुसीलो पडिसेवणया तहा कसाए य / एकेको पंचविही परूवणा तस्सिमा हाइ // 87 // नाणपडिसेवणाए दसणचरणे य लिंग अहसुहुमे / पडिसेवणाकुसीला पंचविही एस नायव्वा / / 88 //