________________ .. व्यवहारस्य विचारा: संमिसेजागयं दिस्स सिस्सेहिं परिवारियं / कोमुईजोगजुत्तं वा तारापरिषुड ससि // 273 // गिहत्थपरतित्थीहिं संसयत्थीहि निच्चसो / सेविजंतं विहंगेहि सर व कमलुज्जल // 274 // खग्गूडे अणुसासंत सद्धावंत समुज्जए / गणस्स अगिला कुब्वंतं संगह विसए सए // 275 // आचार्यमिति शेषः / अहवा गुरुणो आवजीव फासुअ-अफासुपण तेइच्छं / वसभे बारस वासा अट्ठारस भिक्खुणो मासा // 303 // चिकित्सा इयम् / फासुय आहारी से अहिंडतो उ गाहए सिक्ख / ताहे उ उवट्टावण “छजीवणियं तु पत्तस्स // 310 // . षड्जीवनिकाध्ययन ज्ञेयम् / अपत्ते अकहित्ता अर्णाहगय अपरिच्छ अइक्कमे वा से / पकेके चउगुरुगा चोयगसुत्तं तु कारणियं // 311 // इइ खलु आणाबलिया आणासारो य गच्छवासो उ / मोत्तु आणापाणु सा कन्जा सबहिं जोगे // 347 // गिम्हाइसु जे अणागाढजोगपडिवना तेसिं जोगो निक्खिप्पइ मा पमत्तं देवया छलेज तेण निक्खिप्पइ, तेहिं दिवसेहिं विगइओ लभंति, ते आहारित्ता दुब्बला अप्पाजंति पएण कारणेणं निक्खिप्पड जोगो / इतरे नाम आगाढजोगवाही तेसि न निक्खिप्पड़ जोगो न पुण उद्दिसई न वा पढंति / 410 / ओसन्नाण बहूण वि गीयमगियाण उग्गहो नत्थि / / सच्छंदीय गीयाण असमत्त अणीसगीए चि // 490 // . तिविहो उग्गहकालो-उउबद्ध वासारत्ते वुड्ढवासे, उउबद्धे एक पास उस्सग्गेण वासासु चत्तारि मासा गेलन्नं पडुश्च सोलस वरिसा मासा वा।