________________ नि:शेषसिद्धान्तविचार-पर्याये खेत्तेण अद्धजोयण कालेणं जाव भिक्खवेलाओ / खेत्तेण य कालेण य जाणतु सपरकम थेर // 537 / / . जो गाउय समत्थो सूरादारभ भिक्खवेलाओ / विहरउ एसो सपरक्कमो उ नो विहरे तेण परं॥ 538 // भागे भागे मास काले वी आव एकहिं सव्वं / पुरिसेसु वि सत्तण्ह असईए आव पकाउ [सहाओ]॥५५८ // थिरमउयस्स उ असई अप्पडहारियम्स चेव वच्चंति / बत्तीस जोयणाणि वि आरेण अलब्भमाणनि // 557 // * काष्ठसंस्थारके इतिशेषः / आसज खेत्तकाले बहुपाउग्गा न संति खेत्ता वा / निच्च व विभत्ताणं सच्छंदाइ बहूदोसा // 570 // चूर्णिर्यथा- आसज त्ति पडुच्च अण्णेसु * खेत्तेसु असिवाईणि कालो जहा-संपयं नत्थि अण्णाणि खेत्ताण जेसु संथरंति, महायणपाओग्गाणि वा नत्थि खेत्ताणि पिहप्पिहं च जाटुंत सच्छदाई दोसा भवंति / एएहिं कारणेहि उउ-वासाइयंमि एगखेत्ते जयणाए अच्छेज, इति व्यवहाराक्षरैः केचिन्नित्यवास समर्थयन्ति / वल्पचतुद्देिशकस्यैते / पञ्चमे यथा अवि य विणा सुत्तेणं ववहारे ऊ अपच्चओ होइ / तेणं उभयधरो उ गणहारी सो अणुण्णाओ // 31 // ता जाव अजरक्खिय आगमववहारिणो वियाणित्ता / न भविस्सइ दोसु त्ति तो वायंती उ छेयसुयं // 62 // आर्यिकाः छेदश्रुत पाठयन्तीत्यर्थः / षष्ठोद्देशके यथाचरणकरणस्स सारो भिक्खायरिया तहेव सज्झाओ / एस्थउ उजयमाणं तं जाणसु तिव्वसंविगं // 39 // आयरिय-उवज्झायगणंसि पंच अइसेसा पण्णत्ता, तं आयरियउवज्झायस्स उच्चारपासवणं अंतो उवस्सयस्स य निग्गिज्झिय निग्गझिय पप्फोडेमाणे वा पमज्जेमाणे वा नाइकमइ, आयरिय