________________ व्यवहारस्य विचाराः गीयत्थो जायकप्पो अगीओ खलु भवे मजाओ उ / पणगं समत्तकप्पो तदृणगो होइ असमत्तो // 16 // महइ वियारभूमी विहारभूमी य सुलभवित्ती य / सुलभा वसही य जहिं जहण्णतं वासखेत्तं तु // 40 // चिक्खल्ल-पाण-थंडिल-यसही-गोरस जणाउलो वेज्जो / ओसह-निचयाऽहिवई पासंडा भिक्ख सज्झाए // 41 // एते त्रयोदश गुणा वर्षाक्षेत्रे / तरुणे वसहीपाले कप्पट्टिसलिंगमाइ आउभया / मा उ पसज्जति अकप्पिए दोसिमे अण्णे // 60 // अकल्पिके च साधौ दोषा:। अह न संथरंति ताहे आयरिओ हिंडइ तमि वाडए वसहिं पलोएंतो हिंडइ / परिमियं नाम इयरे साहू जावइयं उद्धडाउ ऊणं आणिति तावइयं अज्झापूरं हिंडित्ता आयरिओ खिप्पं संनियट्टइ / वासावासे वीसुंति पिहप्पिहं ठिया असमत्तकप्पिया य ते 'अमणुन्नत्ति / न परोप्पर उवसंपन्ना नत्थि तेसिं उग्गहो समं जइ दोण्णिसमत्तकप्पिया एन्ज तेसिं साहारणं खेत्तं / एगो एगस्त पासे आवस्सयं अहिजइ, आवस्सगवायणायरिओ पुण आवस्सगपडिपुच्छगस्त सगासे दसवेयालियं अहिजइ, दसवेयालियवायणायरिओ हरइ / एवं जाव दिट्ठिवाओ। एवं सुत्ते अत्थे वि एवं चेव, नवरं उवरिम अत्थायरियाणं छेयसुयअत्थायरिओ हरइ / इति वर्षाक्षेत्रे आभाव्यव्यवहारः / गाथाश्च भाष्यस्य यथा वासासु अमणुण्णा असभत्ता जे ठिया भवे वीसु। तेसिं न होइ खेनं म्ह पुण समणुण्णा य करिति // 91 // ता तेसि होइ खेतं / उ पहू तेसि जो उ रायणिओ। लाभो पुण जो तत्था सा सम्वेसिं तु सामण्णो // 92 // अहव जइ वीसु वीसुठियाओ असमत्तकप्पिया होजा। अण्णो समत्तकप्पी एज्जाही तस्स तं खेत्तं // 93 //