________________ नि:शेषसिद्धान्तविचार-पर्याये प्रकल्पो-निशीथः तद्धारी जघन्यगीतार्थः / कल्पधरो मध्यम इत्यर्थः / पुव्वं सत्थपरिण्णा अहीयपढियाइ होउ उवट्टवणा / इण्हि छज्जीवणिया किं सा उ न होउ उवट्ठवणा?॥ 174 // आयारस्स उ उवरिं उत्तरज्झयणाउ आसि पुट्विं तु / दसवेयालिय उवरि इयाणि किं ते न हुंती उ ? // 176 // व्यवहारतृतीयोद्देशके / आचार्यादिपदविचार:- . तिवासपरियागस्स उवज्झायत्तं कप्पइ, तस्त अप्पपरियागस्स नत्थि खेयबहुओ जेण आयरियत्तं पि काहिइ पंचवासपरियागस्स उवज्झायत्तं आयरियत्तं पि कप्पड़, बहुतरवासररियागत्तेग खेयसहतराउ तेण तस्स दो ठाणाणि कप्पंति, छह वासाणं परेण वि य दुवासपरियाओ भवइ, तस्स सव्वाणि वि सट्टाणाणि कप्पति / उवज्झायत्तं आयरियत्तं गणितं पत्तित्तं थेरत्त गणावच्छेइयत्त (183) इत्याचार्यादिपदविचार:। राइत्थीए जाए ताए अगमहिसीए कुलकण्णगाए वा पयासु तिसु वि पारंचिओ, अमच्चीए अणवट्ठो, विहवाए अविसेसियाए पागइत्थीए य [अवसेसियाए] मूलं, तम्हा एयाओ परिहरियवाओ। (249-250) इति उत्थापनाविषयः / संघो गुणसंघाओ संघायविमोयओ य कम्माणं / / रागद्दोसविमुको होइ समो सव्वजीवाणं // 322 // परिणामियबुद्धीए उववेओ होइ समणसंघो उ / कज्जे निच्छियकारी सुपरिच्छियकारओ संघो // 323 // दुक्खेण लभइ बाहिं बुद्धो वि य न लभइ चरित्तं तु / उम्मग्गदेसणाए तित्थयरासायणाए य // 335 // चतुर्थोद्देशके यथाआओ य अजाओ वा दुविहो कप्पो उ होइ नायवो / एकेको वि य दुविहो समत्तकप्पो य असमत्तो // 15 //