________________ * बृहत्कल्पस्य विचारा: अप्पतइओ गणावच्छेइओ अप्पचउत्थो एस सत्तउ गच्छो / उग्गमादि असुद्धं जइ आउट्टियाए गेण्हइ, अप्पणा भोक्खामि सेहस्स चा दाहामि :जेण दोसेण असुद्धं तमावजइ / एय:जत्थ अणाभागेण गहिय, तं जइ अजयणाए देइ तो इमे दोसा / इति सेहं प्रति विचारः। खमणे य असज्झाए राणिय महानिनाय निथए वा / सेसेसु मस्थि खमणं नेव असज्झाइय होइ // 5550 // दिवंगतेविति शेषः / दीहाइमाइसु उ विजबंधं कुवंति उल्लोय कर्ड च पोति। कप्पासईए खलु सेसगाणं मात्त जहन्नेण गुरुस्स कुजा // 5681 // उल्लाची बद्ध्यते इति शेषः / एते कल्पचतुर्थीद्देशकविचारा: / पञ्चमस्य यथा आवस्सिग्गा निसीहिय अकरिति असारणे तमावज्जे / परलोइयं च न कयं सहायगत्तं उवेहाए // 5695 // ज वा भुक्खत्तस्स उ संकममाणस्स देइ अस्साय / सव्वा सो आहारो अकामऽनिटुं चणाहारो // 6083 // जं वा तमि चविहे अईइ अन्नं लोणाई एस आहारो। पञ्चमोद्देशके / षष्ठे यथा सामाइए य छेए निविसमाणे तहेव निविटे / जिणकप्पे थेरेसु य छब्धिह कप्पट्टिइ होइ / / 6257 // सेसा वेढियपात्तं नइ उयराम नग्गय बेति / जुण्णेहिं नग्गिया मी तुर सालिय ! देहि मे पोत्तं // 6366 // जुण्णेहि खंडिएहि य असव्वतणुपाउएहिं न य निच्च / संतेहिं वि निग्गंथा अचेलगा हुंति चेलेसु // 6367 // सवाहिं संजईहिं किइकम्म संजयाण कायव्वं / पुरिसुत्तरिओ धम्मो सर्वाजणाणं पि तित्थेसु // 6299 // तओ पारंचिआ वुत्ता अणवट्टप्पा य तिणि उ / दसणमि य वंतमि चरितमि य केवले // 6410 //