________________ 55 बृहत्कल्पस्य विचारा: उक्कोसेण मग्गसिरबहुलदसमीउ जाव तत्थ अच्छियव्व, किं कारण एञ्चिरं कालं पसंति ? जइ चिक्खल्लो वास वा पडइ तेण इञ्चिर, इहरी कत्तियपुण्णिमाए चेव निगंतव्व // एत्थ उ पणगपणग कारणिगं जा सविसईमासो। सुद्धदसमीठियाण व आसाढीपुण्णिमोसरणं // 4284 // काऊण मासकप्प तत्थेव ठियाणऽतीते मग्गसिरे / सालंबणाण छम्मासिओ उ जेट्रोगगहो होइ // 4286 / / अह अस्थि पयविचारो चउ पाडिवयंमि होइ निग्गमण / अहवा वि अणिताणं आरोवण पुत्वनिहिट्ठा // 4287 // तथा 'सवीसहराए मासे पजोसवित्ता कत्तियपुण्णिमाए पडिक्कमित्ता बिइयदिवसे निग्गयाणं पंचसत्तरि' इत्यादि पर्युषणादिको विचारः // वर्षातिक्रमे उपधिग्रहण-विचारः - पुणमि निग्गयाण साहम्मियखेत्तवजिए गहण / संविग्गाण सकोस इयरे गहियंमि गेहति // 4288 // चूर्णियथा-जत्थ साहम्मिएहिं न कओ वासारत्तो तत्थ गेहंति वत्थाई। जत्थ पुण कओ वासारत्तो तत्थ सकोसे जोयण परिहरित्ता गेण्हति / 'इयरे'त्ति-पासस्थाईतेहि जत्थ को वासारत्तो तत्थ तेहिं गहिए गेण्हति / किं कारणम् ? उच्यते वासातु वि गेण्हंती नेव च नियमेण इयरे विहरती / तेहि उ सुद्धमसुद्धे गहिए गेण्हंति ज सेसं // 4289 // सक्खेत्ते परखेत्ते वा मासा परिहरि-तु गेण्हंति / जकारण न निग्गय तंपि बहिं झोसियौं जाण // 4290 // इति वर्षातिकमे उपधिग्रहणविचारः // मासकल्पानन्तरोपधिग्रहणविचार: - बिइयंमि समोसरणे मासा उक्कोसगा दुवे हुँति / ओमत्थग परिहाणिय पंच पंचेव य जहण्णे // 4297 //