________________ निशीथविचाराः अर्था यथा-निग्गंथा-साहू खमणा वा, सका-रत्तापडा, तावसावणवासिणी, गेरुया - परिवायगा, आजीविगा - गोसालगसिस्सा पंडरभिक्खुया वि भन्नति / इति गाथार्थ: / 'एएण मज्झ भावो विद्धो लोगे पणातहयजमि'त्ति (4428) गाथापूर्वाद्धव्याख्या-पणातहज्जंमि इमंति लोगे जो मणोगयं भावं जाणइ तस्स लोगो आउट्टइ / विशुद्धो ना इत्यर्थ: / ___छिन्नमछिन्ने दुविहे' इत्यादि (4509) गाथायां-तदुलघयाई जत्थ परिमाण-परिच्छिन्ना दिज्जति सो छिन्त्री भण्णइ / तप्पडिवक्खो अछिन्नी इत्यर्थ: / __ हत्थस्स छन्भाया-जहा अंगुलीणं अग्गपञ्चा पढमभागो, बीओ मझापार भागा, तइओ अंगुलीमूले भागा, आउरेहाए चउत्थो भागो, अंगुट्टस्स अभिंतरकोडिए पंचमी भागो, सेसी छट्टो भागो / एवं हस्ते भागाः पद / देसी व सेविसग्गो वसणी व जहा अजाणगनरिदो। रज्ज विलुत्तसारं जह तह गच्छोवि निस्सारो // 4796 // इत्थी जूयं मज्जं मिगव्व वयणे तहा फरुसया य / दंडफरूसत्तमत्थस्स दूसणं सत्त वसणाणि // 4799 // पण्णवाणिज्जा भावा अणंतभागो उ अणभिलप्पाणं / / पण्णवणिजाणं पुण अणंतभागा सुयानबद्धो // 4823 // जं चउदसपुव्वधरा छट्ठाणगया पराप्परं हुंति / / तेण उ अणंतभागा पण्णवणिजाण जं वुत्तं // 4824 // अक्खरलं भेण समा ऊहिया हुति मइविसेसेण / / ते वि य मइविसेसा सुयनाणभंतरे जाण // 4825 // जायणसयं तु गंता अणाहारेण तु भंडसंकंती / वाया अगणी धूमेहि य विद्धत्थं हेाइ लोणाई // 4832 / / हरियालमणासिलिं पिप्पली य खजर मुहिया अभया / आइण्णमणाइण्णा तेवि हु एमेव नायब्वा // 4834 / /