________________ निशीथविचारा: पुरिमा उ उसमसामिणो सिस्सा, चरिमा वद्धमाणसामिणो / हासि एस कपो चेव / जं वासासु पजोसविजंति, वासं पडउ या मा वा / मज्झिमयाण पुण भइयं-पज्जासविति वा न वा / जइ दोसा अस्थि तो पजोसविंति, इदरा नो / मंगलं च वद्धमाणसामितित्थे भवइ / जण य मंगलं तेण सधजिणाणं चरियाई कहिज्जंति, समोना णाणि य, सुहम्माइयाण थेराणं आवलिया कहिजति / पढमंमि समासरणे जावइयं पत्त-चीवरं गहियं / सव्वं वोसिरियव्वं पायच्छित्तं च वोढव्वं // 3253 // पुण्णमि निगयाणं साहम्मियखेत्तवजिए गहणं / संविग्गाण सकोसं इयरे गहियंमि गिहूति // 3258 // सखित्ते परखित्ते दो मासे परिहरित्तु गिहूति / जं कारणं न निग्गया तंपि बहिं झोसियं जाणे // 3260 / / चिक्खल्ल-वास-असिवाइएसु जहिं कारणेसु उ न निति / हिते पडिसेहित्ता गेहति उ दोसु पुण्णेसु // 3261 / / विइए वि समोसरणे मासा उक्कोसगा दुवे हुँति / ओमंथगपरिहाणी य पंच पंचेग य जहणणे // 3266 / / मासकल्पे इत्यर्थः / इति वर्षादिविचारः / जइ वि य फासुगदव्वं कुंथू-पणगादि तहवि दुप्पस्सा / पच्चक्खणाणिणो वि हु राईभत्तं परिहरंति // 3411 // जइ वि य पिपीलिगाई दिसंति पईव-जोइउज्जोए / तह वि खलु अणाइण्णं मूलवयविराहणा जेण // 3412 // उवाइयं अणोवाइयं वा ज पुण्णभद्द-माणिभद्द-सवाण-जक्ख महुंडिमाझ्याण निवेइजइ, सो दुविहो-निस्समनिस्साकडो य / इति बलिः।