________________ नि:शेषसिद्धान्तविचार-पर्याये अट्ठारस पुरिसेसुं वीसं इत्थीसु दस नपुंसेसु / . पवावणा अणरिहा अनला अह एत्तिया भणिया // 3505 // अनला:-प्रव्रज्याया अयोग्या: / बाले वुडढे नपुंसे य जडे कीवे य वाहिए / तेणे रायावयारी य उम्मत्ते य असणे // 3506 // दासे दुटे य मूढे अणत्ते जंगिए इय / उवद्धए य भयए सेहे निप्फेडियाइय // 3507 // एते अष्टादश पुरुषा: प्रव्राजयितुं न कल्पन्ते / एत एवाष्टादशभेदा: गुर्विणी-बालवत्साभ्यां सहिताः स्त्रीपक्षे विंशतिर्भेदाः / परं नपुंसकदारे विसेसो इत्थीणं, इत्थीनपुंसिया इत्थीवेदी वि से नपुंसगवदंपि वेएइ / अदसणो-अन्धः / अणत्ते-रिणवान् / जुगिओ-जात्यादिदृषितः कुण्टमण्टो वा / उवसंपयं बद्धो ओबद्धो / भइउ-मूल्यकर्मकरः / सेहनिष्फेडिउ-अट्टवरिसाइउ माइमाईहिं अमुकलिओ। नपुंसकभेडा यथा पंडएं वाइए कीवे कुंभी ईसालुएं इय / सउणी तकम्मसेवी य पक्खियापक्खिए इय // 3561 // सोगंधिए य आसत्ते वद्धिए चिप्पिए इय / मंतोसही उवहए इसिसत्ते देवसत्ते य // 3562 // गाथाद्वयम् / अर्थस्तु-पंडगो-नपुंसकः / वातिगो-जस्स वायवसेण लिम उड्ढं चेव चिट्ठइ / कुंभी-जस्स वसणा सुजंति / यस्येा उत्पद्यते अभिलाष: स ईर्ष्यालु: / उक्कडवेयत्सणाओ सउणी व सउणी / तकम्मपडिसेवी-जया बीयनिसम्गो तया साणो इव जीहाए लिहइ / सुक्कपक्खे सुक्कपक्खे अईव मोहब्भवो ‘अपक्ख' त्ति कालपक्खो तत्थ अप्पो भवइ स पक्खियापक्खिओ। सुभ-सागारियस्स गंधं मण्णइ त्ति सोगंधी / आसत्तो-इत्थीसरीरे / वद्धिओ-वधितः / जस्स जायमेत्तस्स अंगुट्ठपएसिणीमज्झिमाहि चमढिज्जति स चिप्पिओ इत्यर्थः /